मोह्नेनद्र ने किया २ UPSC परीक्षाओं में परिवार एवं प्रदेश का नाम रौशन
कहा जाता है की यदि निरंतरता से प्रयास किया जाय तो सफलता ज़्यादा दिन दूर नहीं रह सकती| इन शब्दों को अपनी जी तोड़ मेनहत के साथ मोहनेन्द्र जायसवाल ने सार्थक कर दिखाया है|
कौन हैं मोहनेन्द्र जायसवाल –
मोहनेन्द्र जायसवाल मूल रूप से लखनऊ के निवासी हैं लेकिन २०१३ में SSC CGL की परीक्षा उत्तीर्ण कर पिछले दस वर्षों से देहरादून के प्रधान महालेखाकार (लेखापरीक्षा), उत्तराखण्ड कार्यालय में सीनियर ऑडिटर के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। किन्तु मन में कुछ और बड़ा करने की इच्छा को लिए, विभागीय सेवाओं के साथ-साथ अपनी UPSC की भी तैयारी में जुटे रहे ।
२०१३ से UPSC तैयारी शुरू होने के पश्चात मोह्नेनद्र ने ४ बार UPSC सिविल सर्विसेज के प्री एग्जाम पास करने के साथ साथ mains एग्जाम लिखा। और एक बार सिविल सर्विसेज परीक्षा में इंटरव्यू राउंड के लिए भी चयनित हुए | इसके अलावा वह UPSC के अन्य चार अन्य इंटरव्यू के लिए भी चयनित हुए। किन्तु इतनी कठिन परिश्रम के बाद भी सफलता हाथ नहीं लगी। पर मोहनेन्द्र हार मानने वालों मे से नहीं थे । गौरव न्यूज़ से बात करते समय मोहनेन्द्र ज़रा गंभीर शब्दों में श्री जयशंकर प्रसाद जी कि दो पंक्ति कहते हैं कि “वह पथ क्या पथिक, कुशलता क्या, जिस पथ पर बिखरे शूल न हों। नाविक की धैर्य कुशलता क्या, जब धाराऐं प्रतिकूल न हों।” और इनहि प्रतिकूल धाराओं से झुझने के बाद आखिरकार उन्हें एक नहीं यूपीएससी कि 2 परक्षाओं में स्वर्णिम सफलता प्राप्त हुई।
१० सालों के अथक प्रयास के बाद २०२३ में मोहनेन्द्र जायसवाल ने यूपीएससी (सीएपीएफ-असिस्टेंट कमांडेंट एक्जाम) में 20 वीं रैंक हासिल करके टॉप ट्वेंटी में शामिल हुए हैं। इसके साथ ही यूपीएससी (ईएसआईसी-डिप्टी डायरेक्टर एक्जाम) में भी 67 वीं रैंक हासिल की है। इसी के साथ उनके साथ पूरे घर में ख़ुशी कि लहर सी दौड़ गयी है है| अपनी इस उपलब्धी का श्रेय मोहनेन्द्र ने अपनी मेहनत के साथ ही माता रामश्री जायसवाल एवं पिता मृगेंद्र कुमार जायसवाल एवं भाई राघवेंद्र जायसवाल सहित पूरे परिवार से मिले सपोर्ट को दिया है।
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इतने लम्बे समय की मेहनत के बाद मोहनेंद्र जब हार मानने लगे तो उनकी जिंदगी में एक प्रेरणाश्रोत बनकर उनकी मंगेतर आयुषी नारायण आई , जिनके आग्रह और सपोर्ट से मोहनेंद्र ने एक बार फिर से जोरों-शोरों से तैयारी की। मोहनेन्द्र का कहना है कि उनकी मंगेतर, आयुषी नारायण एवं उनका पूरा परिवार उन्हें लगातार मेहनत करने की प्रेरणा देती रही। सफलता हासिल करने तक उन्होंने हौसला नहीं टूटने दिया।
गौरव न्यूज़ से बातचीत करते हुए मोहनेंद्र ने अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपने परिवार जनों के साथ अपने सभी गुरुओं और अध्यापकों को दिया, जिनके बिना ये कठिन सफर तय करना नामुमकिन था एवं जिन्होंने १० सालों के इस लम्बे सफर में, न तो उनका साथ छोड़ा और न ही उनका भरोसा|
गौरव न्यूज़ मोह्नेनद्र के इस जज्बे को सलाम को करता है|