पीसीबी के फरमान से देश में खड़ा हो सकता है दवाओं का संकट

पीसीबी के फरमान से देश में खड़ा हो सकता है दवाओं का संकट

प्लास्टिक-पैकेजिंग मामले में प्रदेश की औद्योगिक इकाइयों की एनओसी रद्द करने की कार्रवाई से प्रदेश के फार्मा उद्योग पर भी बंदी की तलवार लटक गई है। उत्तराखंड में संचालित हो रहीं दवा उत्पादन करने वाली करीब 300 इकाइयां प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के इस फरमान से अगर बंद होती हैं तो देशभर में दवाओं का संकट पैदा हो सकता है।

उत्तराखंड में देहरादून स्थित सेलाकुई फार्मा सिटी, रुड़की, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर आदि क्षेत्रों में 300 से ज्यादा फार्मा यूनिटें दवाएं बनाती हैं। कोरोना महामारी के समय जब देशभर में छोटी दुकानों से लेकर बाजार और औद्योगिक इकाइयां तक बंद हो गई थीं, तब भी दवा फैक्टरियां और रफ्तार से चलने लगी थीं।

लेकिन, अब उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से उद्योगों की एनओसी रद्द करने के आदेश के बाद प्रदेश की सभी दवा फैक्टरियों पर बंदी का संकट खड़ा हो गया है। अगर ऐसा हुआ तो देशभर में दवाओं की किल्लत शुरू हो सकती है। क्योंकि, देश में बनने वाली दवाओं का 20 से 25 फीसदी तक उत्पादन यहां के फार्मा उद्योगों में होता है। इनमें जीवनरक्षक दवाओं से लेकर तमाम तरह के मेडिकल इक्यूप्मेंट्स, सर्जिकल गुड्स आदि शामिल हैं।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार व राजस्व भी होगा प्रभावित 
औद्योगिक इकाइयों के बंद होने की स्थिति में देश से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजार को नुकसान पहुंचने की आशंका है। क्योंकि, दवाओं में इस्तेमाल होने वाले अधिकतर साल्ट और इलेक्ट्रानिक्स सामान के उपकरण चीन से आयात किए जाते हैं। इसके अलावा इकाइयों में तैयार किए जाने वाले उत्पादों को देश-विदेश तक निर्यात किया जाता है। उत्पादन के हिसाब से औद्योगिक इकाइयां बड़े पैमाने पर सरकार को राजस्व भी देती हैं। ऐसे में औद्योगिक इकाइयों के बंद होने से सरकार से लेकर उद्योगपतियों तक को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

उद्योगों से जुड़ी समस्याओं के मामले में सरकार को सक्रिय रहकर काम करना चाहिए। सरकार को कोर्ट से संबंधित मामले में मजबूत पैरवी करनी चाहिए थी। यदि उद्योगों को नुकसान होता है तो रोजगार, राजस्व और व्यापार पर बड़े पैमाने पर असर पड़ेगा। -प्रमोद किलानी, अध्यक्ष, ड्रग मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन उत्तराखंड

किसी भी आदेश को लागू करने से पहले कारण बताओ नोटिस जारी करना, औपचारिकताएं पूरी करने के लिए समय देने जैसी व्यवस्था की जानी चाहिए। लेकिन, यह तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का राजाओं जैसा फरमान है। उद्योगों के मामले में बोर्ड को सोच-समझकर कोई निर्णय लेना चाहिए। -संजय सिकारिया, सचिव, ड्रग मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन उत्तराखंड

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