1971 के युद्ध के वीर सैनिक गोपाल जंग को अंतिम यात्रा में भी लड़ना पड़ा ‘युद्ध’, झूलापुल के लिए दशकों से मांग जारी

1971 के युद्ध के वीर सैनिक गोपाल जंग को अंतिम यात्रा में भी लड़ना पड़ा ‘युद्ध’, झूलापुल के लिए दशकों से मांग जारी

1971 के युद्ध लड़े वीर सैनिक गोपाल जंग बस्नेत की अंतिम यात्रा भी संघर्षपूर्ण रही। लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया, लेकिन गांव से श्मशान तक पहुंचने के लिए परिवार को एक और युद्ध लड़ना पड़ा। रानीबाग के दानीजाला गांव में पुल की सुविधा न होने के कारण पार्थिव शरीर को ट्रॉली से उफनाई गौला नदी पार कराई गई। इससे अंतिम संस्कार में विलंब हुआ, जिससे परिवार और ग्रामीणों में आक्रोश है।

गोपाल जंग बस्नेत ने युद्ध के समय दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे, लेकिन शायद ही उन्होंने सोचा होगा कि उनकी अंतिम यात्रा भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझती रहेगी। दशकों से इस गांव के लोग झूलापुल की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। यह इलाका हल्द्वानी शहर से सटा हुआ है, फिर भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव यहां की स्थिति को उजागर करता है।

उत्तराखंड के गांवों की अनदेखी

गोपाल जंग बस्नेत के गांव में कई परिवार हैं जिन्होंने ब्रिटिश आर्मी से लेकर भारतीय सेना तक देश की सेवा की है। यहां के दर्जन भर से अधिक युवा अब भी भारतीय सेना में सेवाएं दे रहे हैं। बावजूद इसके, एक अदद झूलापुल तक की सुविधा यहां नहीं मिल सकी। अगर हल्द्वानी जैसे शहरी इलाके के नजदीक बसे गांव में यह हाल है, तो रिमोट इलाकों की स्थिति की कल्पना करना मुश्किल नहीं है।

सरकार विकास के दावे करती है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग है। राज्य में विकास की गंगा बहाने के दावे किए जाते हैं, पर ऐसे गांवों की अनदेखी सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाती है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में उत्तराखंड के कई गांव संघर्ष कर रहे हैं और सरकार उनकी सुनने को तैयार नहीं दिखती।

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