यूपी में तीन बाघों की मौत पर कार्रवाई, उत्तराखंड में 12 की मौत पर भी सन्नाटा
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के दुधवा टाइगर रिजर्व में बीते दस दिनों में तीन बाघों की मौत के बाद हड़कंप मचा है। वहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना का संज्ञान लेते हुए कार्रवाई के आदेश दिए हैं। यूपी शासन ने अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक सुनील चौधरी को मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक पद से हटा दिया है। जबकि उत्तराखंड में बीते पांच माह में 12 बाघों की मौत पर भी सन्नाटा पसरा हुआ है। हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जांच की बात कही है।
बाघ एक संरक्षित प्रजाति का जीव है। प्रदेश में बाघों के संरक्षण पर प्रतिवर्ष मोटी रकम खर्च की जाती है। इसके बाद भी एक के बाद एक लगातार बाघों की मौत के मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में सरकार और वन विभाग पर सवाल उठ रहे हैं। बीते दिनों अमर उजाला ने इस मामले को प्रमुखता से उठाया था। इसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खबर का संज्ञान लेते हुए बाघों की मौत के मामले में जांच की बात कही थी।
अधिक हो सकते हैं उत्तराखंड में मौत के मामले
हालांकि इस मामले में पहले ही मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डॉ. समीर सिन्हा के स्तर से जांच के आदेश दे दिए गए थे। लेकिन जांच में क्या बात सामने आई है, इसका अभी खुलासा नहीं किया गया है। इस संबंध में डॉ. सिन्हा का कहना है कि उत्तराखंड में बाघों की मौत के सबसे अधिक मामले कुमाऊं के तराई वन प्रभाग के हैं। इसलिए इस मामले की जांच चीफ कुमाऊं को सौंपी गई थी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट मुख्यालय को सौंप दी थी, लेकिन कुछ बिंदुओं पर उनसे विस्तृत जांच आख्या मांगी गई है। उन्हें शीघ्र ही फाइनल रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है।
हालांकि जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश भूभाग में भले ही उत्तराखंड से बड़ा है, लेकिन बाघों के घनत्व के मामले में वह उत्तराखंड से बहुत पीछे है। वर्ष 2018 की गणना के अनुसार, उत्तरप्रदेश में जहां बाघों की संख्या 173 के आसपास है, वहीं उत्तराखंड में इनकी संख्या करीब 442 के आसपास है। ऐसे में उत्तराखंड में मौत के मामले भी अधिक हो सकते हैं।
उत्तर प्रदेश में बाघों की मौत के मामलों की उत्तराखंड से तुलना नहीं की जा सकती है। दोनों जगह की भिन्न-भिन्न परिस्थितियां हैं। जहां तक बाघों की अस्वाभाविक मौत का मामला है, उसकी हर स्तर पर जांच कराई जाती है। यूपी में बाघों की संख्या उत्तराखंड के मुकाबले बहुत कम है। – आरके सुधांशु, प्रमुख सचिव, वन एवं पर्यावरण