एम्स ऋषिकेश में 70 वर्षीय मरीज की जान बचाने के लिए कैरोटिड आर्टरी स्टेंटिंग सर्जरी सफल

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश के चिकित्सकों ने एक गंभीर स्थिति से जूझ रहे बुजुर्ग मरीज का जीवन बचाने में सफलता हासिल की है। सहारनपुर, उत्तर प्रदेश निवासी 70 वर्षीय श्री जिक्रिया की आंतरिक कैरोटिड आर्टरी (आईसीए) 90 प्रतिशत तक संकरी हो चुकी थी। यह वही धमनी है जो दिल से मस्तिष्क तक रक्त की आपूर्ति करती है। इस कारण उन्हें पहले एक बार स्ट्रोक भी हो चुका था और आगे बड़ा तथा जानलेवा स्ट्रोक होने का खतरा बहुत अधिक था।
न्यूरोसर्जरी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. निशांत गोयल ने बताया कि मरीज की जांच के दौरान पाया गया कि मस्तिष्क के बाएं हिस्से की पूरी रक्त आपूर्ति केवल बाईं कैरोटिड आर्टरी पर निर्भर थी। चूंकि कोई वैकल्पिक रक्त प्रवाह (कोलैटरल सर्कुलेशन) उपलब्ध नहीं था, इसलिए यदि यह धमनी बंद हो जाती तो मरीज को गंभीर स्ट्रोक का सामना करना पड़ सकता था। इस स्थिति को देखते हुए मरीज पर तुरंत कैरोटिड आर्टरी स्टेंटिंग की आवश्यकता थी।
23 अगस्त को कार्डियोलॉजी विभाग की कैथ लैब में यह प्रक्रिया की गई। इसमें जांघ की धमनी के जरिए एक कैथेटर और तार डाला गया। सबसे पहले संकरी आर्टरी में बैलून एंजियोप्लास्टी की गई और फिर रक्त प्रवाह को बनाए रखने के लिए धातु का स्टेंट लगाया गया। पूरी प्रक्रिया मरीज की जाग्रत अवस्था में की गई ताकि निरंतर न्यूरोलॉजिकल मॉनिटरिंग की जा सके। मस्तिष्क में एम्बोली (छोटे थक्के) जाने से रोकने के लिए एक प्रोटेक्टिव फिल्टर भी लगाया गया। इस प्रक्रिया के दौरान मरीज को किसी प्रकार का चीरा नहीं लगाया गया।
डॉ. गोयल के अनुसार कैरोटिड आर्टरी स्टेंटिंग के अलावा “कैरोटिड एंडार्टरैक्टॉमी” भी एक विकल्प है, जिसमें सर्जरी करके धमनी खोलकर प्लाक हटाया जाता है। एम्स ऋषिकेश में दोनों ही सुविधाएं उपलब्ध हैं। इस प्रक्रिया में न्यूरोसर्जरी विभाग के डॉ. श्रीकांत, डॉ. अनिल, डॉ. सिद्धार्थ, कार्डियोलॉजी विभाग के डॉ. सुवेन कुमार, एनेस्थीसिया विभाग की डॉ. प्रियंका गुप्ता, डॉ. उमंग और कैथ लैब टीम ने अहम भूमिका निभाई।
मरीज श्री जिक्रिया का उपचार पूरी तरह आयुष्मान भारत योजना के तहत हुआ, जिससे उन्हें कोई खर्च नहीं उठाना पड़ा। प्रक्रिया के बाद वे तीसरे दिन पूरी तरह स्वस्थ होकर अस्पताल से छुट्टी पा गए। उन्होंने टीम का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि “अब उन्हें ऐसा लग रहा है मानो सिर से भारी बोझ उतर गया हो।” डॉक्टरों ने उन्हें छह महीने तक ब्लड थिनर जारी रखने और उसके बाद दोबारा एंजियोग्राम कराने की सलाह दी है। धीरे-धीरे दवाओं की खुराक कम की जाएगी, लेकिन लंबे समय तक इलाज की आवश्यकता रहेगी।
एम्स की कार्यकारी निदेशक एवं सीईओ प्रो. मीनू सिंह ने कहा कि यह सफलता उत्तराखंड और आसपास के राज्यों की जनता को विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की दिशा में एक बड़ा कदम है। वहीं विभागाध्यक्ष डॉ. रजनीश कुमार अरोड़ा ने बताया कि न्यूरोसर्जरी विभाग शल्य चिकित्सा और एंडोवास्कुलर दोनों तकनीकों से मरीजों को सेवाएं उपलब्ध करा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में हर साल लगभग 18–20 लाख लोग स्ट्रोक से प्रभावित होते हैं। इनमें कैरोटिड आर्टरी संकुचन इस्केमिक स्ट्रोक का एक प्रमुख कारण है। समय पर निदान और उपचार जैसे कैरोटिड स्टेंटिंग या एंडार्टरैक्टॉमी गंभीर और घातक स्ट्रोक से बचाव में बेहद महत्वपूर्ण साबित होते हैं। एम्स ऋषिकेश का यह सफल उपचार इसी बात का उदाहरण है कि आधुनिक चिकित्सा तकनीक से जीवन बचाना संभव है।