बिनसर अग्निकांड: जिंदगी की जंग लड़ते कैलाश भट्ट, हादसे के बाद अब भी हैं दर्द में

बिनसर अग्निकांड: जिंदगी की जंग लड़ते कैलाश भट्ट, हादसे के बाद अब भी हैं दर्द में

अल्मोड़ा के हवालबाग क्षेत्र के ग्राम घनेली निवासी वन विभाग के दैनिक श्रमिक कैलाश भट्ट के लिए 13 जून 2024 का दिन कभी न भूलने वाला है। उस दिन बिनसर में हुए भीषण अग्निकांड में आग बुझाते समय कैलाश सहित आठ वनकर्मी बुरी तरह से झुलस गए थे, जिनमें से छह कर्मियों की मौत हो चुकी है। कैलाश और एक अन्य वनकर्मी का इलाज एम्स दिल्ली में हुआ, जहाँ से वे 21 सितंबर को वापस लौटे हैं। कैलाश के शरीर पर आज भी हादसे के गहरे निशान हैं, जो उनकी पीड़ा और उस भयावह घटना की याद दिलाते हैं।

कैलाश भट्ट बताते हैं कि उन्हें दोपहर में बिनसर अभयारण्य के शिव मंदिर के पास आग लगने की सूचना मिली थी। वे साथियों के साथ आग बुझाने पहुँचे, लेकिन आग इतनी तेजी से फैली कि सभी उसकी चपेट में आ गए। उनके पास संसाधन के नाम पर सिर्फ पेड़ों की टहनियाँ थीं, जिनसे वे आग को काबू करने की कोशिश कर रहे थे। आग की लपटें उनके शरीर को झुलसाने लगीं, तो उन्होंने भागने की कोशिश की। बचाव के लिए वे चिल्लाते रहे, लेकिन आसपास कोई मदद नहीं थी। जब उनकी आँख खुली, तो उन्होंने खुद को बेस अस्पताल में पाया। बाद में उन्हें गंभीर हालत में दिल्ली के एम्स ले जाया गया।

सरकार से नहीं मिली कोई मदद –

कैलाश भट्ट कहते हैं कि हादसे के बाद कई अधिकारियों और कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या ने उनसे मिलने का वादा किया था और तमाम घोषणाएँ की थीं। लेकिन आज तक कोई भी वादा पूरा नहीं हुआ। विभागीय कर्मचारियों और एक ट्रस्ट से मिली मदद के अलावा सरकार की ओर से कोई ठोस सहायता नहीं मिली। इलाज से लौटने के बाद भी कोई अधिकारी उनकी सुध लेने नहीं आया, जबकि यह दावा किया गया था कि उनकी नियमित देखरेख की जाएगी।

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अब बिस्तर पर लेटे रहने वाले कैलाश अपने और अपने परिवार के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। 1994 में वन विभाग में दैनिक श्रमिक के रूप में कार्य शुरू करने वाले कैलाश की आय का अब कोई स्थिर स्रोत नहीं है। उनके बेटे की पढ़ाई चल रही है, और वह नहीं जानते कि आगे उनका परिवार कैसे गुजारा करेगा। उन्होंने विभाग से अपील की है कि उन्हें नियमित नौकरी दी जाए ताकि उनके परिवार को कुछ सहारा मिल सके।

कैलाश के पड़ोसी और वन विभाग के सेवानिवृत्त कर्मचारी आरडी भट्ट ने मांग की है कि जिन वनकर्मियों ने इस अग्निकांड में शहादत दी, उन्हें और उनके परिवारों को सैनिकों की तरह सुविधाएँ मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जो कर्मचारी अपनी ड्यूटी के प्रति अपना सर्वस्व देते हैं, उन्हें हालात के सहारे नहीं छोड़ा जा सकता।

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न्यूज़ सोर्स – अमर उजाला

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