श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही बदरीनाथ स्थित ब्रह्मकपाल में पितृ श्राद्ध हेतु आज सुबह से पहुंचे श्रद्धालु

श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही बदरीनाथ स्थित ब्रह्मकपाल में पितृ श्राद्ध हेतु आज सुबह से पहुंचे श्रद्धालु

बदरीनाथ धाम में स्थित ब्रह्मकपाल में पिंडदान और तर्पण के लिए आज मंगलवार सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है। श्राद्ध पक्ष के प्रारंभ होते ही आज सुबह से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री अपने पितरों के उद्धार के लिए यहां पहुंचे हैं। मान्यता है कि ब्रह्मकपाल में पिंडदान और तर्पण करने से सात पीढ़ियों का उद्धार होता है, जिस कारण श्रद्धालु इस पवित्र स्थल की ओर उमड़ते हैं। अगले 15 दिनों तक यहां श्रद्धालुओं की भीड़ इसी प्रकार बनी रहेगी।

ब्रह्मकपाल का धार्मिक महत्व

बदरीनाथ धाम में स्थित ब्रह्मकपाल, जिसे कपालमोचन तीर्थ भी कहा जाता है, का विशेष धार्मिक महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान ब्रह्मा का पांचवां सिर विचलित हो गया था, तब भगवान शिव ने उसे काट दिया, और वह सिर बदरीनाथ के पास अलकनंदा नदी के किनारे गिरा। यह स्थान आज ब्रह्मकपाल के रूप में जाना जाता है और यहां एक शिला के रूप में भगवान ब्रह्मा का वह सिर विद्यमान है। धाम के कपाट खुलने से लेकर बंद होने तक श्रद्धालु यहां पिंडदान और तर्पण करने आते हैं, लेकिन श्राद्ध पक्ष के दौरान यहां विशेष रूप से भीड़ लग जाती है।

पिंडदान का विशेष महत्व

तीर्थ पुरोहित हरीश सती के अनुसार, ब्रह्मकपाल में पिंडदान और तर्पण करने का विशेष धार्मिक महत्व है। यदि किसी व्यक्ति ने अपने पितरों का अन्यत्र पिंडदान या तर्पण नहीं किया हो, तो वह यहां आकर कर सकता है। यहां किया गया पिंडदान सबसे श्रेष्ठ माना जाता है और इसके बाद अन्यत्र पिंडदान करने की आवश्यकता नहीं होती।

आज सुबह से उमड़ी भीड़

आज मंगलवार, 17 सितंबर की सुबह से ही बदरीनाथ स्थित ब्रह्मकपाल पर तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है। तीर्थ पुरोहित उमेश सती और अन्य पुरोहितों के अनुसार, आज पूर्णिमा श्राद्ध के दिन सुबह से लेकर शाम तक श्रद्धालु अपने पितरों के लिए तर्पण कर रहे हैं। 2 अक्टूबर को अमावस्या श्राद्ध के साथ श्राद्ध पक्ष समाप्त होगा, जिसके बाद 3 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि का पर्व प्रारंभ होगा।

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