सीमांत क्षेत्र की हकीकत: सड़क न होने से बुजुर्ग का शव 12 किमी तक कंधे पर ढोया

सीमांत क्षेत्र की हकीकत: सड़क न होने से बुजुर्ग का शव 12 किमी तक कंधे पर ढोया

उत्तराखंड का सीमांत मंच क्षेत्र एक बार फिर सरकार और तंत्र की लापरवाही का शिकार बना। चंपावत जिले की रूइया ग्राम पंचायत के खटगिरी तोक गांव में 65 वर्षीय बुजुर्ग संतोष सिंह के शव को ग्रामीणों ने पन्नी में लपेटकर 12 किमी तक कंधे पर ढोया। यह घटना न केवल पहाड़ की कठिनाइयों को उजागर करती है, बल्कि उन वादों की पोल भी खोलती है, जो पिछले दो दशक से सड़क निर्माण के नाम पर किए जा रहे हैं।

जानकारी के मुताबिक, संतोष सिंह कुछ दिनों से बीमार थे। परिजन उन्हें जिला अस्पताल ले गए, लेकिन हालत बिगड़ती गई। सोमवार को घर लौटते समय रास्ते में उनका निधन हो गया। शव को पहले वाहन से 30 किमी दूर मंच तक लाया गया, इसके बाद सड़क खत्म होने के कारण पन्नी में लपेटकर डंडे से बांधा गया और युवाओं ने कंधे पर उठाया।

बारिश और फिसलन भरे पहाड़ी रास्तों पर चार घंटे तक शव को ढोते रहे प्रेम सिंह, गणेश, हिमांशु, बचन सिंह, रवींद्र, राजन सिंह, श्याम सिंह, केशव सिंह और अमित जैसे ग्रामीण। किसी के हाथ में छाता था तो किसी के कंधे पर भारी बोझ। गांव पहुंचने तक हर कदम पर पहाड़ की उपेक्षा का दर्द साफ झलक रहा था। ग्रामीणों ने कहा कि बीमार हो या गर्भवती महिला, जिंदा या मृत—सबको कंधे पर ही ढोना उनकी नियति बन चुकी है।

मृतक के दोनों बेटे बाहर नौकरी करते हैं। उनके लौटने के बाद मंगलवार को अंतिम संस्कार होगा। ग्रामीणों का गुस्सा इस बात पर भी है कि 2003 से प्रस्तावित सड़क आज तक कागजों से बाहर नहीं निकल सकी। हर बार सर्वे और योजना के नाम पर झूठे भरोसे दिए जाते हैं। अब प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत नया सर्वे शुरू हुआ है, लेकिन ग्रामीणों को भरोसा नहीं कि यह योजना धरातल पर उतरेगी।

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इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर कब तक पहाड़ के लोग ऐसे हालात झेलते रहेंगे। क्या सरकार और प्रशासन को सड़क जैसी बुनियादी सुविधा देने में दो दशक और लगेंगे? ग्रामीणों का कहना है कि अगर जल्द ही सड़क नहीं बनी, तो उनका आक्रोश आंदोलन में बदल जाएगा।

Saurabh Negi

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