कॉर्बेट टाइगर शिकार प्रकरण के पुराने फाइल दोबारा खुलीं, वन विभाग में बढ़ी बेचैनी

सात साल पुराने कॉर्बेट टाइगर शिकार प्रकरण की फाइलें दोबारा खुलने के बाद उत्तराखंड वन विभाग में भारी चिंता फैल गई है। लंबे समय से दबे दस्तावेज़, जांच रिपोर्टें और विभागीय पत्राचार फिर सामने आने लगे हैं, जिससे कई सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारी असहज महसूस कर रहे हैं।
मामले ने फिर गति तब पकड़ी जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, उत्तराखंड सरकार और पूर्व मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को नोटिस जारी किया। इसके बाद वर्तमान अधिकारियों में बेचैनी बढ़ी है, जबकि पुराने दस्तावेज़ों में जिन सेवानिवृत्त अधिकारियों के नाम आए थे, वे फिर दबाव में हैं। इंटरनेट पर दोबारा सामने आए पुराने पत्र, CBI के हलफनामे और विभागीय रिपोर्टें मामले को नए सिरे से सुर्खियों में लेकर आई हैं।
अगली सुनवाई तीन हफ्ते बाद सुप्रीम कोर्ट में होनी है, जिसमें लंबित CBI जांच पर महत्वपूर्ण फैसला आने की संभावना है। CBI ने 2020 और 2023 में दाखिल हलफनामों में कुछ वन अधिकारियों की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए थे और अंतरराष्ट्रीय शिकार गिरोह से संभावित गठजोड़ का संकेत दिया था।
विवाद बढ़ने के साथ 10 जनवरी 2018 को नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा NGO टाइगर आई की याचिका पर जारी नोटिस भी फिर चर्चा में है। पूर्व PCCF जयराज की जांच रिपोर्ट में उस समय के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, पूर्व कॉर्बेट निदेशक और कई अधिकारियों पर गंभीर प्रशासनिक लापरवाही के आरोप लगाए गए थे।
इसके अलावा 27 अगस्त 2018 का एक गोपनीय पत्र भी फिर सामने आया है, जिसमें मार्च 2018 में STF द्वारा बरामद पांच बाघ की खाल और हड्डियों का जिक्र है। 28 जून 2018 की जांच रिपोर्ट के आधार पर उस समय के कॉर्बेट निदेशक, कलागढ़ और लैंसडौन के DFO को प्रशासनिक जिम्मेदारी तय करते हुए अन्य अधिकारियों पर भी जवाबदेही तय करने की बात कही गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित जांच पर अगला फैसला आने से पहले ये पुराने दस्तावेज़ फिर से वन विभाग को कानूनी और सार्वजनिक जांच के दायरे में ला रहे हैं।




