करोड़ों खर्च और नतीजा शून्य : देहरादून नियो मेट्रो स्टेशन की जमीन पर अब पार्क निर्माण की उठी आवाज

करोड़ों खर्च और नतीजा शून्य : देहरादून नियो मेट्रो स्टेशन की जमीन पर अब पार्क निर्माण की उठी आवाज

देहरादून, 4 अगस्त — राजधानी देहरादून में बहुप्रतीक्षित नियो मेट्रो प्रोजेक्ट को एक और झटका लगा है। आठ वर्षों में 90 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद न तो केंद्र सरकार से मंजूरी मिली, न ही जमीनी कार्य शुरू हो पाया। अब प्रोजेक्ट के लिए आरक्षित भूमि पर पार्क बनाने की मांग ने सरकार के पूरे प्रयास पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। यह जमीन आईएसबीटी के पास स्थित है, जहां प्रस्तावित स्टेशन भवन बनना था। लेकिन अब एमडीडीए एचआईजी कॉलोनी के निवासी और झबरेड़ा विधायक देशराज कर्णवाल ने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर उसी भूमि पर सार्वजनिक पार्क विकसित करने की मांग की है। कर्णवाल, जो स्वयं कॉलोनी वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष भी हैं, का कहना है कि क्षेत्र में हरित क्षेत्र की आवश्यकता है, और यह जमीन उसके लिए उपयुक्त है।

सबसे बड़ी चिंता यह है कि पार्क निर्माण की यह पहल बेहद चुपचाप ढंग से आगे बढ़ रही है। उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (यूएमआरसी) को इस कवायद की भनक तक नहीं है। यूएमआरसी के प्रबंध निदेशक बृजेश कुमार मिश्रा ने बताया कि उनके पास ऐसी किसी योजना की जानकारी नहीं है और नियमानुसार उस भूमि पर नियो मेट्रो स्टेशन निर्माण प्रस्तावित है।

उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने मेट्रो परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) जनवरी 2022 में केंद्र को भेजी थी, जिसे पहले कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी थी। लेकिन दो साल से अधिक समय बीतने के बाद भी केंद्र सरकार ने परियोजना पर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है। इस बीच, राज्य सरकार ने भी इसे खुद के स्तर पर आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड (PIB) से अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं निकल पाया।

परियोजना में देरी का असर बजट पर भी पड़ा है। पहले जिसकी लागत लगभग 1852 करोड़ रुपये आंकी गई थी, वह अब बढ़कर 2300 करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गई है। यह राशि उस वक्त और भी खटकने लगती है जब प्रोजेक्ट की जमीन पर ही वैकल्पिक निर्माण की बातें शुरू हो जाती हैं।

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प्रस्तावित मेट्रो में दो कॉरिडोर शामिल हैं — आईएसबीटी से गांधी पार्क (8.5 किमी) और एफआरआई से रायपुर (13.9 किमी)। कुल 25 स्टेशनों और 22.42 किलोमीटर की इस परियोजना को देहरादून की ट्रैफिक समस्या का स्थायी समाधान माना जा रहा था। लेकिन लगातार टालमटोल और अब भूमि विवाद से इसकी दिशा ही बदलती दिख रही है।

अगर सरकार इस पर जल्द फैसला नहीं लेती, तो यह परियोजना एक और अधूरी योजना बनकर रह जाएगी — करोड़ों खर्च और नतीजा शून्य।

Saurabh Negi

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