नेचर बड्डी का हाथियों के संरक्षण के लिए देहरादून में साइकिल से की जागरूकता

आज देहरादून में वन्य जीव सप्ताह के तहत गज उत्सव मनाया गया। नेचर्स बड्डी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में एक साइकिल रैली का आयोजन किया गया। इस रैली में 70 से अधिक लोगों ने प्रतिभाग किया। यह साइकिल रैली का उद्देश्य हाथियों के संरक्षण और कैसे उनके बारे में जान मानस को जानकारी देना था कि किस तरह हाथी अपना जीवन जीता है और किस तरह वह जगलों में और हमारे आस पास में विचरण करता है। नेचर्स बड्डी संस्था स्वयं हाथियों के संरक्षण का काम उत्तराखंड के 3 हाथी कोर्रिडोर्स पर करती है।
आज की रैली महाराणा स्पोर्ट्स कॉलेज देहरादून के पास सौडा सरोली से शुरू होकर बडासी पुल तक किया गया, क्योंकि इस रस्ते में पिछले कुछ समय में इस जगह पर हाथियों का आवागमन बढ़ा है। और इस जगह जागरूकता के आवश्यकता सबसे अधिक है क्योकि आज हमने उस जगह रोड बना दी है लेकिन हाथी वहां पर राजाजी से आते है।
भारतीय पर्यावरण,वन और जलवायु मंत्रालय की 2023 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तररखण्ड में हाथियों की संख्या सिर्फ लगभग 1839 रह गई है (रिपोर्ट का पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें)। यदि इसी तरह संख्या उत्तराखंड में कम होगी तो जल्द ही हाथी उत्तराखंड में दिखेंगे ही नहीं। गौरतलब है की बीते हफ्ते मात्र हरिद्वार में 3 हाथियों की जान चली गई, इस तरह से उत्तराखंड में हाथियों की संख्या कम होना एक चिंताजनक विषय है, जबकि उत्तराखंड में 65% से अधिक जंगल हैं।
नेचर्स बड्डी के मोहित ने बताया कि आजकल हाथियों के की सबसे ज्यादा मृत्यु एक रेलवे ट्रैक पर हो रही है और दूसरा इलेक्ट्रिक फेन्सेस (विधुत चलित तारबाढ़) से हो रही है। कार्यक्रम में बताया कि पिछले कुछ समय में हाथियों की बहुत मूवमेंट आबादी वाले जगहों पर में हो रही है इसके पीछे क्या कारण हैं? इसका सबसे बड़ा कारण है कि अब घर जंगल काट के बनाये जा रहे हैं या फिर घर जंगलों के बहुत पास हो गए है। वहीँ दूसरी तरफ, हाथी रास्तों को बचपन से याद करके चलता है जिससे वो हमेशा चलते हैं। अब घर उनके रास्ते में है इसलिए मानव और हाथियों के बीच में टकराव हो रहा है। जिस तरह हम लोग जंगलों में अतिक्रमण कर रहे हैं चाहे वो फ्लाईओवर के नाम पर हो या किसी रोड के चौड़ीकरण के नाम पर या किसी अन्य प्रोजेक्ट के नाम पर, इससे हाथियों के साथ साथ जंगल में सभी वन्य जीवों के जीवन और भोजन पर बुरा असर पड़ रहा है और यह लगातार बढ़ ही रहा है।
जंगल की बात करें तो हाथी जंगल के पर्यावरण (इकोसिस्टम) का महत्वपूर्ण जानवर है – एक का पॉटी भी जानवरों को नुट्रिशन देता है और जंगल में उर्वरक (फर्टिलाइजर)का काम करता है। जब हाथी जंगल में रस्ते बनाते है जो वह रास्ते बाकी जानवरों के काम भी आता है, और कभी कभी इंसानों के भी।
उत्तरखंड में अभी 11 कॉरिडोर ऐसे हैं जिनकी पहचान सरकार ने की है और उनकी जानकारी सभी को है। ऐसे कई और कॉरिडोर होंगे जिसका इस्तेमाल हाथी करते है और अभी उनका पता हमें नहीं है।
ये हैं उत्तराखंड के 11 हाथी कॉरिडोर –
1. रवासन-सोननदी कॉरिडोर (राजाजी-कॉर्बेट कॉरिडोर) – यह एक अंतर्राज्यीय कॉरिडोर है, यह उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के जंगलों को जोड़ता है। यह कॉरिडोर सोनानदी वन्यजीव अभ्यारण्य को बिजनौर से राजाजी टाइगर रिज़र्व में जोड़ता है।
2. शिवालिक कॉरिडोर – यह मोहंड-शाकुम्भरी-बरकला, देहरादून के पास में आता है। यहाँ से भी हाथी उत्तरप्रदेश से उत्तराखंड की तरफ आते हैं।
3. चीला-मोतीचूर कॉरिडोर – यह राजाजी टाइगर रिज़र्व के चीला-मोतीचूर रेंज के जंगलों को जोड़ता है।
4. मोतीचूर-गोहरी कॉरिडोर – ये राजाजी टाइगर रिज़र्व के मोतीचूर और गोहरी रेंज को जोड़ता है।
5. तीनपानी कॉरिडोर – मोतीचूर रेंज (राजाजी) को बड़कोट और ऋषिकेश के जंगलों को जोड़ता है।
6. किलपुरा – खटीमा – सुराई कॉरिडोर – यह हल्द्वानी के जंगल और नंधौर वन्यजीव अभ्यारण्य और पीलीभीत के टाइगर रिजर्व के जंगलों को जोड़ता है।
7. कोसी नदी कॉरिडोर – यह कार्बेट टाइगर रिजर्व को रामनगर के जंगलों से कोसी नदी के किनारे कई जगह पर जोड़ता है।
8. निहाल-भाखड़ा कॉरिडोर (फतेहपुर गड़गड़िया कॉरिडोर) – यह रामनगर के फतेहपुर रेंज के जंगलों को तराई के गड़गड़िया के जंगलों से जोड़ता है।
9. कंसारु-बड़कोट (लाल तप्पड कॉरिडोर) – यह राजाजी टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट की कंसारू रेंज को ऋषिकेश (देहरादून) के जंगलों से साथ जोड़ता है।
10. रवासन-सोननदी कॉरिडोर (लैंसडौन) – यह कॉरिडोर राजाजी और कार्बेट नेशनल पार्क को जोड़ता है।
11. चिलकिया – कोटा कॉरिडोर – यह चालिया रिजर्व फॉरेस्ट, कार्बेट टाइगर रिजर्व और रामनगर के कोटा रिजर्व फॉरेस्ट को जोड़ता है।
इस मुद्दे पर हम सभी को एक होकर काम करने की आवश्यकता है जिससे मानव और हाथियों के बीच का टकराव काम हो सके साथ ऐसे उपाय करने होंगे जिससे हाथी भी आबादी वाली जगहों पर न आये। और सबसे पहला उपाय तो यह है कि उनके विचरण के जंगलों को न काटा जाय और हाथिओं के लिए बने कोर्रिडोर्स कर कोई इस तरह का व्यवधान न हो जिससे उनको दिक्कत आये।