रुड़की में राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान की स्थापना
जलवायु परिवर्तन के कारण जहां पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, वहीं वर्षा का पैटर्न भी बदला है। हिमनद (ग्लेशियर) पिघलने और भूजल के गिरते स्तर के पीछे भी जलवायु परिवर्तन की अहम भूमिका मानी जा रही है, जिसका प्रतिकूल असर जल संसाधन, कृषि, वन्यजीव आदि पर पड़ रहा है। ऐसे में हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन पर शोध की आवश्यकता है। अब तक हिम और हिमनद अनुसंधानीय अध्ययन से संबद्ध समग्र जानकारी एकत्र करने वाले एकल संस्थान की कमी थी, जिसे दूर करने को जल शक्ति मंत्रालय ने राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (एनआइएच) रुड़की में हिममंडल एवं जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र की स्थापना की है। इस केंद्र में संस्थान के विज्ञानियों की 11-सदस्यीय टीम 16 से अधिक प्रोजेक्ट पर कार्य कर रही है। इसके अलावा ग्लेशियर संबंधी सभी शोध को एक स्थान पर एकत्र करने के लिए पोर्टल भी तैयार हो रहा है।
हिममंडल एवं जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र के प्रमुख विज्ञानी डा. सुरजीत सिंह ने बताया कि हिमनद पर नेपाल, इंडोनिशया, न्यूजीलैंड, अमेरिका, यूके, रूस, चीन आदि देश शोध कर रहे हैं। भारत में भी 12 से अधिक अनुसंधान, विकास और शैक्षणिक संस्थान इस पर अध्ययन कर रहे हैं। ऐसे में कई बार कार्य में दोहराव, मानव शक्ति एवं बजट के अनावश्यक उपयोग की संभावना रहती है। डाटा साझा करने में भी कुछ संस्थान आनाकानी करते हैं। वहीं, हिमनद पिघलने के लिए विभिन्न कारक एवं परिस्थितियां जिम्मेदार हैं। मसलन, जो हिमनद नार्थ फेसिंग में है, उस पर धूप नहीं पड़ेगी तो वह तेजी से नहीं पिघलेगा।
मौजूदा खाई को पाटने का कार्य करेगा केंद्र
विज्ञानी डा. सुरजीत सिंह ने बताया कि भारत में हिम और हिमनद अनुसंधानीय अध्ययन से संबद्ध ऐसा कोई एकल संस्थान नहीं था, जो अंतःविषयक अनुसंधान एवं विकास कार्यों में संलग्न हो। साथ ही हिम और हिमनद अनुसंधान अध्ययनों से संबद्ध विभिन्न मुद्दों का शुरू से आखिर तक समाधान प्रदान करता हो। अनुसंधान एवं विकास के लिए नेटवर्किंग, ज्ञान साझा करने और हस्तांतरित करने के लिए एक औपचारिक मंच की आवश्यकता है। हिम और हिमनद प्रबंधन के लिए यह केंद्र बहुविषयक पद्धतियों के माध्यम से मौजूदा खाई को पाटने का कार्य करेगा। बताया कि इसके लिए 20-सदस्यीय संचालन समिति का भी गठन किया गया है, जिसके चेयरमैन जल शक्ति मंत्रालय के सचिव हैं। समिति में केंद्रीय जल आयोग, केंद्रीय भूमि जल बोर्ड सहित विभिन्न संस्थानों के प्रतिनिधि सदस्य हैं।
पोर्टल किया जा रहा विकसित
देश के विभिन्न संस्थान जलवायु परिवर्तन, हिम एवं हिमनद को लेकर अध्ययन कर रहे हैं। सभी शोध कार्यों की जानकारी एक जगह उपलब्ध हो, इसके लिए जल शक्ति मंत्रालय ने केंद्र को एक पोर्टल विकसित करने के निर्देश दिए हैं। डा. सुरजीत सिंह ने बताया कि सी-डैक पुणे यह पोर्टल तैयार कर रहा है। ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि पोर्टल में अपना शोध डालने वाले संस्थान या शोधकर्ता की अनुमति के बिना उसकी डिटेल रिपोर्ट और आंकड़े नहीं देखे जा सकेंगे।
हिमालयी क्षेत्र में चार ग्लेशियरों का अध्ययन
एनआइएच रुड़की हिमालय के सबसे बड़े ग्लेशियरों में से एक उत्तरकाशी स्थित 30 किमी लंबे गंगोत्री ग्लेशियर की वर्ष 2002 से निगरानी कर रहा है। वहां पर आटोमेटिक वेदर स्टेशन भी लगाया हुआ है। वहीं, हाल ही में संस्थान ने हिमालय के तीन और ग्लेशियर की निगरानी शुरू की है। इनमें उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित मिलम ग्लेशियर, टिहरी जिले का खतलिंग ग्लेशियर और हिमाचल प्रदेश का त्रिलोकीनाथ ग्लेशियर शामिल है।