मुफ्त मेडिकल और इंजीनियरिंग कोचिंग देगी सरकार, लेकिन क्या यह सच है?
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उत्तराखंड सरकार सरकारी और अशासकीय विद्यालयों के छात्र-छात्राओं के लिए मेडिकल, इंजीनियरिंग और क्लैट की मुफ्त कोचिंग शुरू करने जा रही है। इसके लिए देश के प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थानों के साथ एमओयू की प्रक्रिया चल रही है। उच्च शिक्षा विभाग की निदेशक डॉ. अंजू अग्रवाल के अनुसार, इस योजना का प्रस्ताव तैयार हो चुका है और इसे नए शिक्षा सत्र से लागू किया जाएगा।
कोचिंग का स्वरूप और चयन प्रक्रिया
सरकार द्वारा प्रस्तावित योजना के तहत कक्षा 11वीं और 12वीं के विद्यार्थियों को वरीयता के आधार पर आवासीय राजीव गांधी नवोदय विद्यालयों में ऑफलाइन कोचिंग दी जाएगी। इन विद्यालयों को “सेंटर ऑफ एक्सीलेंस” के रूप में विकसित करने की योजना है। कोचिंग के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाएगी, ताकि योग्य छात्रों को ही इसमें शामिल किया जा सके।
सीटों की सीमित संख्या—कितने छात्रों को मिलेगा लाभ?
योजना के अनुसार, 300 छात्रों को आईआईटी कोचिंग, 300 को नीट कोचिंग और 300 को क्लैट की कोचिंग दी जाएगी। यानी पूरे राज्य में केवल 900 छात्रों को इस मुफ्त कोचिंग का लाभ मिलेगा। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह योजना प्रदेश के हजारों छात्रों के लिए पर्याप्त होगी, या फिर यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक पहल बनकर रह जाएगी?
ऑफलाइन कोचिंग—क्या सभी के लिए व्यावहारिक?
कोचिंग सप्ताह में प्रतिदिन दो घंटे, शाम 5 से 7 बजे तक ऑफलाइन माध्यम से दी जाएगी। हालांकि, यह मॉडल उन छात्रों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है जो दूरदराज के क्षेत्रों में रहते हैं या जिनके पास स्कूलों तक सीमित पहुंच है। डिजिटल शिक्षा के दौर में क्या सरकार को ऑनलाइन संसाधनों पर भी ध्यान नहीं देना चाहिए था?
कोचिंग संस्थानों की भूमिका—मात्र व्यापारिक सहयोग या गुणवत्तापूर्ण शिक्षा?
सरकार ने देश के विभिन्न प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थानों से बातचीत की है, और ये संस्थान पहले ही शिक्षा विभाग को अपनी सेवाओं का प्रस्तुतिकरण दे चुके हैं। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि इन कोचिंग संस्थानों को सरकारी सहायता मिलेगी या वे स्वयं इस योजना का वित्तीय भार उठाएंगे। यदि यह सरकारी खर्चे पर संचालित होगा, तो इसका बजट क्या होगा? और अगर निजी संस्थान इसमें सहयोग देंगे, तो उनके व्यावसायिक हितों की क्या भूमिका होगी?
क्या यह योजना समान अवसर प्रदान करेगी?
सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए यह योजना एक बड़ा अवसर हो सकती है, लेकिन जब कुल सीटें 900 ही हैं, तो यह योजना कितनी प्रभावी होगी? प्रदेश के हजारों छात्रों के बीच इतनी सीमित संख्या में चयन होने पर कई योग्य छात्रों को इस योजना से बाहर रहना पड़ सकता है।
सरकार की यह पहल महत्वाकांक्षी है, लेकिन इसे व्यावहारिक रूप देने के लिए इसे बड़े स्तर पर लागू करने की जरूरत है। यदि सरकार वाकई आर्थिक रूप से कमजोर लेकिन प्रतिभाशाली छात्रों को आगे बढ़ाना चाहती है, तो इसे सिर्फ 900 छात्रों तक सीमित रखने के बजाय व्यापक स्तर पर लागू किया जाना चाहिए। ऑनलाइन माध्यमों के जरिए अधिक छात्रों को जोड़ा जा सकता है, जिससे यह योजना अधिक प्रभावी और समावेशी बन सकेगी।