गोल्डन कार्ड योजना पर बढ़ता वित्तीय बोझ, कर्मचारियों के इलाज में आ रही बाधा

गोल्डन कार्ड योजना के अंतर्गत सरकारी कर्मचारियों को कैशलेस इलाज की सुविधा देने में राज्य सरकार को भारी वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ रहा है। कर्मचारियों से सालाना 120 करोड़ रुपये अंशदान के रूप में लिए जा रहे हैं, जबकि अस्पतालों में इलाज का खर्च 300 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इस असंतुलन के चलते राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण को भुगतान करने में मुश्किलें आ रही हैं।
राज्य के 1.28 लाख कर्मचारी और 91 हजार पेंशनर्स इस योजना के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनका अंशदान अब बढ़ते खर्च के मुकाबले अपर्याप्त साबित हो रहा है। सूत्रों के मुताबिक, वर्ष 2020-21 से मार्च 2025 तक 510 करोड़ रुपये अंशदान के मुकाबले करीब 700 करोड़ रुपये के इलाज के दावे किए जा चुके हैं। भुगतान में देरी के कारण कई निजी अस्पताल कैशलेस इलाज देने से इनकार कर रहे हैं, जिससे कर्मचारियों में रोष है।
सरकार अब इस योजना को बचाए रखने के लिए वैकल्पिक वित्तीय व्यवस्था और लागत नियंत्रण के उपायों पर विचार कर रही है। योजना की कमजोर कड़ियों को चिन्हित कर दुरुस्त करने की कवायद जारी है।