पूर्व मुख्यमंत्री हरदा की ‘चाय’ एक स्टंट? क्या जनता के बीच अपनी पहचान बचाने की कोशिश?
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत एक बार फिर चर्चा में हैं। कर्णप्रयाग में एक शादी समारोह के दौरान उन्होंने बरातियों को चाय परोसकर ध्यान खींचा। यह घटना सिर्फ एक सादगी भरा पल थी या अपनी राजनीति को पुनर्जीवित करने का प्रयास हैं ?
हरीश रावत, जिन्हें ‘हरदा’ के नाम से जाना जाता है, पिछले कुछ समय से अपनी सक्रियता और अनोखी गतिविधियों के जरिए जनता से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी की गिरती स्थिति और खुद रावत की कमजोर होती साख ने उन्हें ऐसे कदम उठाने के लिए प्रेरित किया है। चाय परोसने जैसी घटनाएं अधिकतर उनकी सादगी दिखाने के बजाय राजनीतिक “स्टंट” के रूप में देखी जा रही हैं। हरीश रावत का यह अंदाज नया नहीं है। उन्होंने इससे पहले भी अपने बयानों और गतिविधियों से सुर्खियां बटोरी हैं। लेकिन उनकी इन कोशिशों को जनता की समस्याओं से जोड़ने के बजाय राजनीतिक अस्तित्व बनाए रखने का प्रयास माना जा रहा है। कांग्रेस, जो उत्तराखंड में विपक्ष की भूमिका निभा रही है, अपने प्रभाव में गिरावट देख रही है। ऐसे में रावत की यह सक्रियता पार्टी को मजबूती देने के बजाय व्यक्तिगत छवि बचाने की कवायद लगती है।
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संस्कृति और परंपरा की आड़?
शादी समारोह में संस्कृत महाविद्यालय के छात्रों और लोक कलाकारों की सराहना कर रावत ने पारंपरिक मूल्यों को बढ़ावा देने का संदेश दिया। लेकिन क्या यह वास्तव में उनकी संस्कृति के प्रति प्रेम है, या एक राजनीतिक मंच का इस्तेमाल? यह सवाल भी खड़ा हो रहा है।
उत्तराखंड की जनता, जो अभी महंगाई, बेरोजगारी और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रही है, क्या ऐसे “चाय स्टंट” को महत्व देगी? या फिर यह राजनीति में अपना वजूद बचाने की कोशिश के रूप में ही देखा जाएगा?