माणा हिमस्खलन: घर लौटने की जद्दोजहद, पैसे-सामान सब बर्फ में दबे, श्रमिकों की उम्मीद सिर्फ कंपनी पर

उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा क्षेत्र में आए हिमस्खलन से सुरक्षित बचाए गए श्रमिकों के सामने अब घर पहुंचने की चुनौती खड़ी हो गई है। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद वे अपने गांव लौटने के लिए चिंतित हैं, क्योंकि उनका सारा सामान, पैसा और दस्तावेज बर्फ में दब गए हैं। फिलहाल, कार्यदायी कंपनी ने श्रमिकों को हरिद्वार तक भेजने की व्यवस्था की है, लेकिन वहां से आगे की यात्रा उन्हें खुद करनी होगी।
घर जाने के लिए पैसे नहीं, सिर पर चिंता
माणा में सड़क निर्माण कार्य में लगे श्रमिकों को 29 फरवरी को आए हिमस्खलन के दौरान बचा लिया गया था। इनमें से 44 श्रमिकों को सेना के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जबकि दो गंभीर रूप से घायल श्रमिक अभी भी एम्स ऋषिकेश में इलाजरत हैं। मंगलवार को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद 36 श्रमिकों को घर भेज दिया गया, लेकिन उनके पास सफर करने के लिए पैसे तक नहीं बचे हैं। उनका कहना है कि उनके सारे कपड़े, सामान और जरूरी दस्तावेज हिमस्खलन में दब गए हैं। फिलहाल, कंपनी ने उन्हें हरिद्वार तक पहुंचाने की जिम्मेदारी ली है, लेकिन आगे की व्यवस्था का कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है।
बिहार निवासी श्रमिक जयेंद्र प्रसाद ने कहा,
“हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है। तन पर सिर्फ वही कपड़े हैं, जो पहने हुए थे। पैसे भी बर्फ में दब गए। अब घर लौटने के लिए कोई साधन नहीं है। भगवान ने इतनी बड़ी आपदा से बचा लिया, आगे भी कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा।”
वहीं, श्रमिक जितेश कुमार ने बताया,
“कंपनी ने हरिद्वार तक भेजने की व्यवस्था कर दी है, लेकिन उसके आगे हमें खुद ही देखना होगा। उम्मीद है कि कंपनी हमारी मदद करेगी, नहीं तो किसी तरह घर पहुंचने की कोशिश करेंगे।”
सरकारी मदद की गुहार, प्रशासन का भरोसा
इस मामले में कार्यदायी कंपनी के मैनेजर मनु शर्मा ने कहा कि श्रमिकों को हरिद्वार तक भेजने की जिम्मेदारी कंपनी ने उठाई है। वहां से आगे की यात्रा के लिए कंपनी के कर्मचारी जरूरी सुविधाएं मुहैया कराएंगे।
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ज्योतिर्मठ के एसडीएम चंद्रशेखर वशिष्ठ ने कहा,
“हम यह सुनिश्चित करेंगे कि श्रमिकों को किसी तरह की परेशानी न हो। कंपनी को निर्देश दिए जाएंगे कि सभी श्रमिकों को उनके घर तक सुरक्षित पहुंचाने की जिम्मेदारी उठाए।”
इस आपदा के बाद श्रमिकों की हालत बेहद दयनीय हो गई है। अब देखना होगा कि प्रशासन और कंपनी मिलकर उनकी घर वापसी के लिए कितनी जल्दी कोई ठोस समाधान निकालते हैं।