उत्तराखंड: दून-मसूरी में मियावाकी पौधरोपण योजना सवालों के घेरे में, 52 लाख खर्च पर जांच शुरू

देहरादून, 15 जून – देहरादून और मसूरी वन प्रभाग में मियावाकी तकनीक से कराए गए पौधरोपण कार्य पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। तीन वर्षों में 52 लाख रुपये खर्च किए जाने के बाद, इसे दुनिया का सबसे महंगा पौधरोपण करार देते हुए मुख्य वन संरक्षक (CCF) कार्ययोजना ने प्रमुख वन संरक्षक को पत्र भेजकर मामले की जांच की मांग की है। इसके बाद वन मुख्यालय ने आधिकारिक जांच शुरू कर दी है।
पौधों की दरों में भारी अनियमितता का आरोप
पत्र के अनुसार, देहरादून वन प्रभाग में एक हेक्टेयर क्षेत्र में 18,333 पौधों की खरीद 100 रुपये प्रति पौधे की दर से प्रस्तावित की गई, जबकि विभाग द्वारा पहले से तय दर महज 10 रुपये प्रति पौधा है। यानी, 11 गुना अधिक दरों पर खरीद का प्रस्ताव तैयार किया गया, जो संदेहास्पद माना जा रहा है।
सवालों के घेरे में फेंसिंग लागत
पत्र में यह भी कहा गया है कि मैदानी क्षेत्रों में फेंसिंग की औसत लागत लगभग 1.57 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर है, लेकिन देहरादून में इससे भी अधिक खर्च प्रस्तावित किया गया है, जो पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।
मसूरी प्रभाग में सवा चार करोड़ का प्रस्ताव, तकनीकी खामियां
मसूरी वन प्रभाग में भी 4.25 करोड़ रुपये से अधिक की मियावाकी योजना पर सवाल उठाए गए हैं। यहां 7-8 फीट ऊंचे पौधों को 100 से 400 रुपये प्रति पौधे की दर से खरीदने का प्रस्ताव बनाया गया, जो मियावाकी तकनीक की मूल भावना के ही खिलाफ है। मियावाकी तकनीक में छोटे पौधों को पास-पास लगाकर पारस्परिक प्रतिस्पर्धा से तेजी से विकास करवाया जाता है।
पहले के खर्च के मुकाबले यह योजनाएं कई गुना महंगी
सीसीएफ के अनुसार, देहरादून के कालसी क्षेत्र में एक हेक्टेयर मियावाकी पौधरोपण पर पांच वर्षों में 14.83 लाख रुपये खर्च हुए, जबकि नई योजनाओं में कहीं अधिक खर्च प्रस्तावित किया गया है। इससे सरकारी धन के दुरुपयोग की आशंका और गहरी हो गई है।
प्रमुख वन संरक्षक डॉ. धनंजय मोहन ने पुष्टि की कि मामले की जांच शुरू हो चुकी है और आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। डीएफओ देहरादून नीरज शर्मा ने कहा कि “सभी कार्य तय मानकों के अनुसार हो रहे हैं”, जबकि मसूरी डीएफओ अमित कंवर ने कहा कि “पुरानी योजना में उठे सवालों को ध्यान में रखते हुए नई योजना तैयार की जा रही है, और जो भी कमियां होंगी, उन्हें दूर किया जाएगा।”