आठ साल बाद भी गंगा मैली: भ्रष्टाचार और लापरवाही ने डुबोई नमामि गंगे परियोजना?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 7 जुलाई 2016 को हरिद्वार में बड़े धूमधाम से शुरू की गई 20,000 करोड़ की महत्वाकांक्षी नमामि गंगे परियोजना गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के उद्देश्य से लाई गई थी। लेकिन आठ साल बाद भी गंगा की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। हरिद्वार में एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट), सीवेज पंपिंग स्टेशन और अन्य कार्यों पर हजारों करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद गंगा आज भी मैली है।
गलत तथ्यों से छिपाई गई सच्चाई
परियोजना के तहत भ्रष्टाचार और लापरवाही के मामले सामने आए हैं। एक नहर का वर्चुअली उद्घाटन किया गया, जो अपने पहले ही ट्रायल में फेल हो गई। इस नहर पर पूरा बजट खर्च हो चुका था। दैनिक जागरण द्वारा मामले को उजागर करने के बाद हुई विभागीय जांच में न केवल भ्रष्टाचार प्रमाणित हुआ, बल्कि दोषी अधिकारियों की पहचान भी की गई। बावजूद इसके, उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। उत्तराखंड सिंचाई विभाग के तत्कालीन प्रमुख अभियंता ने यह स्वीकार किया कि निर्माण में तकनीकी खामियों के कारण नहर ढह गई और करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ। इसके साथ ही गंगा की स्वच्छता का उद्देश्य भी प्रभावित हुआ।
बड़े जनरेटर सेट खरीदे गए, लेकिन जवाब नहीं
एसटीपी तक सीवरेज जल पहुंचाने के लिए पंपिंग स्टेशनों को निर्बाध विद्युत आपूर्ति देने के उद्देश्य से बड़े जनरेटर सेट खरीदे गए। हालांकि, पंपिंग स्टेशनों पर पहले से ही जनरेटर मौजूद थे। नए जनरेटर आए, लेकिन पुराने सेट का क्या हुआ, इसका विभाग के पास कोई जवाब नहीं है।
इसके अतिरिक्त, एसटीपी की क्षमता को नाकाफी बताते हुए नई एसटीपी बनाने की आवश्यकता जताई गई थी। दावा था कि यह योजना अगले 20-30 वर्षों को ध्यान में रखकर बनाई गई है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट ने खोली पोल
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, बिना ट्रीटमेंट के गंगा का पानी पीने लायक नहीं रह गया है। परियोजना के तमाम कार्य लापरवाही और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए।
एनएमसीजी की जांच और निर्देश
हरिद्वार के गंगा प्रेमी रामेश्वर गौड़ की शिकायत पर राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने मामले की जांच के लिए कार्यक्रम निदेशक एसपीएमजी को निर्देश दिया है। 18 नवंबर 2024 को एनएमसीजी के तकनीकी निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार ने जांच रिपोर्ट भेजने और कार्रवाई करने के निर्देश दिए।
नमामि गंगे परियोजना को भ्रष्टाचार और अनदेखी ने इस हद तक प्रभावित किया है कि गंगा की निर्मलता और अविरलता का सपना अधूरा रह गया। अब देखना यह है कि दोषियों पर कब और कैसे कार्रवाई होती है और गंगा को स्वच्छ बनाने के प्रयास कब प्रभावी होंगे।