त्‍यूणी,उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की सीमा पर हिमालय की गोद में बसी चांइशील घाटी उत्तरकाशी, देहरादून (उत्तराखंड) और शिमला (हिमाचल प्रदेश) जिले के सीमावर्ती क्षेत्र से जुड़ी हुई है। साहसिक पर्यटन के लिहाज से महत्वपूर्ण चांइशील घाटी में पर्यटन विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार ने वर्ष 2017 में इसे ट्रैक ऑफ द इयर घोषित किया था। लेकिन, सुविधाओं की कमी के चलते पर्यटक उत्तराखंड के बजाय हिमाचल के रास्ते इस घाटी की सैर कर रहे हैं। इन दिनों भी गर्मियों की छुट्टी बिताने आए पर्यटकों की यहां खासी चहल-पहल है।

दो पर्वतीय राज्यों की सीमा पर स्थित चांइशील घाटी अर्द्धचंद्राकार पर्वत शृंखला के समान नजर आती है। इसकी सीमाएं उत्तरकाशी जिले की मोरी, देहरादून जिले की त्यूणी और शिमला जिले की रोहडू तहसील से लगती हैं। हालांकि, घाटी का अधिकांश हिस्सा उत्तरकाशी की सुदूरवर्ती कोठीगाड पट्टी में पड़ता है। यहां दूर-दूर तक फैले खूबसूरत पहाड़, मीलों लंबे बुग्याल (मखमली घास के मैदान), जल धाराएं व दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भरपूर खजाना मौजूद है। आप उत्तराखंड के राज्य पक्षी मोनाल का दीदार भी यहां कर सकते हैं।

साहसिक पर्यटन के लिहाज से महत्वपूर्ण इस घाटी को प्रदेश सरकार ने वर्ष 2017 में ट्रैक ऑफ द इयर घोषित किया था। इसके तहत तब देहरादून से उत्तरकाशी के सीमावर्ती बलावट-मौंडा गांव तक 230 किमी लंबी माउंटेन बाइकिंग रैली भी निकाली गई। जिसमें दो अमेरिकी पर्यटकों समेत कुल 22 पर्यटक शामिल हुए। इस दौरान चांइशील बुग्याल तक ट्रैक रूट बनाने और ठहरने के लिए टेंट लगाने का कार्य कर रहे मौंडा-बलावट  निवासी तीन ग्रामीणों की आकाशीय बिजली की चपेट में आकर मौत हो गई थी। जबकि, तीन अन्य ग्रामीण बुरी तरह झुलस गए थे। बावजूद सरकार व पर्यटन विभाग यहां आधारभूत सुविधाएं तक नहीं जुटा पाया। यही वजह है कि चांइशील घाटी पहुंचने के लिए पर्यटकों को हिमाचल की राह पकडऩी पड़ रही है।

स्थानीय लोग बताते हैं कि बीते दो सालों में बलावट-मौंडा ट्रैक रूट से यहां बामुश्किल सौ पर्यटक ही पहुंच पाए। जबकि, हिमाचल प्रदेश ने सीमा से सटे चिडग़ांव व लरोट को पर्यटन हब के रूप में विकसित कर लिया है। जिससे गर्मी के दिनों में सौ से 150 पर्यटक रोजाना चांइशील घाटी पहुंच रहे हैं। यहां तक कि उत्तराखंड के पर्यटक भी हिमाचल होते हुए ही चांइशील जा रहे हैं।

समुद्रतल से 3750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चांइशील घाटी

समुद्रतल से 3750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चांइशील घाटी को प्रकृति ने बेपनाह खूबसूरती बख्शी है। यहां पहुंचने के लिए देहरादून से वाया चकराता-त्यूणी रूट नजदीक पड़ता है। जबकि, उत्तरकाशी के बंगाण क्षेत्र की कोठीगाड पट्टी के ग्राम बलावट व मौंडा से 15 किमी लंबा ट्रैकिंग रूट है। जंगल के बीच से होकर गुजरने वाले इस ट्रैकिंग रूट की हालत बेहद खराब है। जिससे स्थानीय लोग भी बड़ी मुश्किल से चांइशील टॉप तक पहुंच पाते हैं।

हिमाचल ने बनाई चांइशील टॉप तक सड़क

हिमाचल ने साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए शिमला जिले के रोहडू से चिडग़ांव-लरोट होकर चांइशील टॉप तक सड़क पहुंचा दी है। जो हिमाचल के अंतिम छोर में बसे डोडाक्वार गांव को भी जोड़ती है। चांइशील घाटी के मखमली बुग्याल में पर्यटकों की चहलकदमी बढऩे से हिमाचल के लोग अच्छी कमाई कर रहे हैं। जबकि, अपने यहां पर्यटन विकास राज्य गठन के 19 वर्षों बाद भी गति नहीं पकड़ पाया।

सुविधाएं न होने से पर्यटक नाराज

हिमाचल के रास्ते चांइशील घाटी की सैर पर आए पर्यटक हरीश कुकरेजा, सोनिया, राधिका, हरीश चौहान आदि का कहना है कि हिमाचल व उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां समान हैं। बावजूद इसके हिमाचल सरकार ने पर्यटन विकास के क्षेत्र में उत्तराखंड से कई गुणा ज्यादा तरक्की की है। चांइशील घाटी का अधिकांश हिस्सा उत्तराखंड की सीमा में होने के बावजूद पर्यटन गतिविधि हिमाचल से संचालित हो रही हंै। जिससे यहां के लोग खुद को ठगा-सा महसूस करते हैं।

प्रशिक्षण के बाद ठप पड़ी पर्यटन विकास की गति

रुपिन व टोंस घाटी से सटे चांइशील बुग्याल में सांस्कृतिक, धार्मिक, साहसिक व हर्बल पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार ने दो साल पहले स्थानीय युवाओं के लिए बेस कैंप मौंडा-बलावट में पांच-दिवसीय प्रशिक्षण शिविर लगाया था। इसे ‘ट्रैक रूट सर्वे’ शिविर नाम दिया गया। जिला पंचायत सदस्य प्रकाश देवनाटा, बीडीसी मेंबर केवला चौहान, अटाल ग्रामीण युवा समिति के अध्यक्ष बसंत शर्मा, ग्रामीण हरीश चौहान, जनक सिंह सजवाण व बिट्टू चौहान बताते हैं कि पर्यटन विभाग की उदासीनता के चलते क्षेत्र के कई महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल उपेक्षित पड़े हैं। लेकिन, सरकार इस ओर ध्यान ही नहीं दे रही।