एम्स ऋषिकेश में हड्डी और सारकोमा कैंसर को लेकर जागरूकता कार्यक्रम, विशेषज्ञों ने दी समय पर जांच की सलाह

ऋषिकेश – जुलाई को विश्वभर में सारकोमा और अस्थि कैंसर जनजागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर एम्स ऋषिकेश में सोमवार को एक महत्वपूर्ण जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में विशेषज्ञ डॉक्टरों ने बताया कि समय रहते इन कैंसर की पहचान कर इलाज शुरू कर दिया जाए तो मरीज की जान बचाई जा सकती है। एम्स की कैंसर ओपीडी में मरीजों, तीमारदारों और आम नागरिकों को इस गंभीर बीमारी के लक्षण, पहचान और इलाज की जानकारी दी गई। कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. अमित सहरावत ने बताया कि सारकोमा एक दुर्लभ और जटिल कैंसर है, जो मांसपेशियों, नसों और हड्डियों में होता है। भारत में इसकी पहचान में देरी मुख्य चुनौती है, क्योंकि लोग शुरुआती लक्षणों को मामूली मानकर नजरअंदाज कर देते हैं।
डॉ. सहरावत ने बताया कि सारकोमा दो प्रकार के होते हैं – सॉफ्ट टिशू सारकोमा और बोन सारकोमा। इसके लक्षणों में हड्डियों में गांठ, सूजन या लगातार दर्द शामिल हैं। एक साधारण एक्स-रे से भी शुरुआती पहचान की जा सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत में ऑस्टियोसारकोमा और इविंग सारकोमा जैसे मामलों में अब कीमोथेरेपी और सर्जरी के संयोजन से 75-80% तक मरीजों की जान बचाई जा सकती है।
कैंसर विशेषज्ञ डॉ. दीपक सुंदरियाल ने कहा कि सही समय पर इलाज जीवन को बचाने के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता भी सुधार सकता है। उन्होंने लोगों से अपील की कि इस बीमारी के प्रति जागरूकता बढ़ाएं ताकि समय रहते इलाज शुरू हो सके।
कार्यक्रम में मल्टीडिसिप्लिनरी ट्रीटमेंट ग्रुप (MDT) द्वारा इलाज की भूमिका पर भी चर्चा हुई। डॉक्टरों का कहना है कि इस कैंसर से लड़ने के लिए सिर्फ एक डॉक्टर नहीं, बल्कि एक समर्पित टीम की जरूरत होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता और सुविधाओं की कमी इस बीमारी की पहचान में सबसे बड़ी बाधा है, जिसे एम्स ऋषिकेश जैसे संस्थान लगातार कम करने की कोशिश कर रहे हैं।
कार्यक्रम के अंत में सभी उपस्थित लोगों ने इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने का संकल्प लिया। इस मौके पर कार्यक्रम संयोजक अंकित तिवारी, कुमुद बडोनी, डॉ. साईं प्रसाद, संजीवनी संस्था के अनुराग पाल, आरती राणा, दीपिका नेगी और अन्य कई लोग मौजूद रहे।