जंगल की आग रोकने के लिए बनाई योजनाएं सब कागज तक ही सिमट कर रह गई

जंगल की आग रोकने के लिए बनाई योजनाएं सब कागज तक ही सिमट कर रह गई

वन विभाग ने जंगल की आग से निपटने डेढ़ दशक में कई योजनाएं बनाई, लेकिन वनाग्नि रोकने में सब कागजी साबित हुई। महकमे ने चीड़ की पत्ती की पिरुल (आग की बड़ी वजह माना जाता है) से कोयल, ब्रिकेट से लेकर बिजली उत्पादन के कार्य में इस्तेमाल का खाका खींचा, पर कोई योजना आगे नहीं बढ़ सकी। हालत यह है कि हर साल जंगल की आग में वन संपदा प्रभावित हो रही है।  राज्य में 244 वन विभाग की रेंज है, इसमें 137 रेंज में करीब 24 लाख टन पिरुल गिरता है। जंगल की आग की बड़ी वजह पिरुल को माना जाता है। ऐसे में जंगलात पिरुल से निपटने के लिए कई योजना बना चुका है। इसमें करीब 14 वर्ष पहले पिरुल से कोयला बनाने की योजना बनी, इसे तैयार कर कुछ स्कूलों को भी भेजा गया। पर योजना आगे नहीं बढ़ सकी। इसके बाद वर्ष 2010-11 में पिरुल का इस्तेमाल बिजली उत्पादन में करने की योजना बनी।

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योजना आगे नहीं बढ़ सकी
बताया जाता है कि पिरुल केवल तीन महीने होता है, ऐसे में बहुत व्यावहारिक न होने से यह योजना भी आगे नहीं बढ़ सकी। कुछ ही संस्था अपने प्रयास से काम कर रही हैं। इसके बाद पिरुल से ब्रिकेट बनाने की योजना बनाई गई। इसमें पिरुल को क्रश कर और कुछ केमिकल का इस्तेमाल करते हुए और हाई प्रेशर से एक तरह से चिपकाना था। इसके लिए उधमसिंह नगर जिले के किच्छा में एक कंपनी ने फैक्ट्री लगाई। पर फैक्ट्री में पिरुल पहुंचने में जंगलात के ट्रांजिट परमिट का मामला फंस गया। क्योंकि पिरुल को वन उपज को माना जाता था उसके लिए ट्रांजिट परमिट की जरूरत थी। इसके चलते मामला फंस गया और यह योजना भी बंद हो गई।

इसके बाद पिरुल से पैलेट बनाने की योजना बनी। पैलेट के बनाने के लिए जो कंपनी थी, उसने अल्मोड़ा जिले में उसे शुरू करने का प्रयास किया। यहां पर बिजली कनेक्शन के कारण मामला फंसा। बाद उसने नैनीताल जिले के कोटाबाग में प्रयास किया, लेकिन कोटाबाग तक पिरुल पहुंचाना भी एक चुनौती था। ऐसे में यह योजना भी बंद हो गई। यही नहीं राज्य स्थापना से पूर्व एकीकृत उत्तर प्रदेश के समय मार्डन फारेस्ट कंट्रोल प्रोजेक्ट की योजना 1987 में बनी। इसके लिए हल्द्वानी में आफिस खोला गया। इसमें वनाग्नि से निपटने के लिए हवाई जहाज, हेलिकाप्टर और भारी संसाधनों के इस्तेमाल की योजना बनी। अधिकारियों को यूरोप में ट्रेनिंग कराई। कई जगह हेलीपैड बनाए गए। पर यह योजना भी परवान नहीं चढ़ सकी।

वर्ष                         वनाग्नि की घटना             प्रभावित जंगल का क्षेत्रफल हेक्टेयर में

2019                         2158                         2981

2020                         0135                         0172

2021                         2813                         3943

2022                         2186                         3425

2023                         0773                         0685

हाल में अल्मोड़ा में पिरुल से ब्रिकेट और पैलेट बनाने का काम शुरू किया गया। उत्तरकाशी, धूमाकोट में भी इस दिशा में काम चल रहा है, ब्रिकेट और पैलेट बनाना लाभकारी है। इसे और आगे बढ़ाया जाएगा। इससे प्रति किलो तक पिरुल उपलब्ध कराने वाले को कंपनी और वन विभाग साढ़े पांच रुपये प्रति किलो भी दे रहा है। -निशांत वर्मा, अपर प्रमुख वन संरक्षक वनाग्नि नियंत्रण

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