देहरादून,  उत्तराखंड में बाघों के कुनबे में इजाफे के बाद सुरक्षा को लेकर बढ़ी चुनौतियों से पार पाने के लिए अब कोशिशें शुरू कर दी गई हैं। इस कड़ी में उप्र के जमाने की वन्यजीव अंचल व्यवस्था को फिर से धरातल पर उतारने की तैयारी है। गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मंडलों में दो-दो वन्यजीव अंचल खुलेंगे। वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत ने इस बारे में जल्द से जल्द प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश वन विभाग को दिए हैं।

बाघ संरक्षण की दिशा में उत्तराखंड अहम भूमिका निभा रहा है। बाघों की निरंतर बढ़ती संख्या इसकी तस्दीक करती है। हाल में जारी अखिल भारतीय बाघ गणना के नतीजों पर ही गौर करें तो यहां बाघों की संख्या 442 पहुंच गई है। इनमें 102 का इजाफा चार साल के वक्फे में हुआ। 2014 की गणना में यहां 340 बाघ पाए गए थे। यही नहीं, अब तो राज्य के हर जिले में बाघों की मौजूदगी है।

जाहिर है कि बाघ बढऩे के साथ ही सुरक्षा को लेकर भी चिंता सताने लगी है। इस कड़ी में वन्यजीव अंचल व्यवस्था की तरफ सरकार का ध्यान गया है। दरअसल, अविभाजित उत्तर प्रदेश में यहां भी अंचल व्यवस्था अस्तित्व में थी। तब उत्तराखंड क्षेत्र में कोटद्वार (गढ़वाल) और रामनगर (कुमाऊं) दो वन्यजीव अंचल कार्यरत थे।

प्रत्येक अंचल में सहायक वन संरक्षक की अगुआई में पांच सदस्यीय टीम थी। उसका कार्य वन्यजीव अपराधों की जांच-पड़ताल और अपराधियों की धरपकड़ के साथ ही खुफिया जानकारी जुटाना था। उत्तराखंड बनने के बाद अंचल व्यवस्था खत्म कर दी गई, जबकि उप्र में यह अभी भी है।

इसलिए जरूरी हैं अंचल 

असल में बाघ सहित अन्य वन्यजीव शिकारियों और तस्करों के निशाने पर हैं। विशेषकर कुख्यात बावरिया गिरोहों ने नाक में दम किया हुआ है, जिनका जाल राज्य से लेकर सीमापार तक फैला है। ऐसे में वन्यजीवों की सुरक्षा किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।

चार साल पहले भी हुआ था प्रस्ताव 

बढ़ते वन्यजीव अपराधों की रोकथाम को चार साल पहले वन महकमे ने अंचल व्यवस्था का प्रस्ताव शासन को भेजा था। इसके तहत गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों में दो-दो अंचल प्रस्तावित किए गए, मगर यह मुहिम परवान नहीं चढ़ी। अब बदली परिस्थितियों में इस व्यवस्था को लेकर सरकार सक्रिय हुई है।

डॉ. हरक सिंह रावत (वन एवं पर्यावरण मंत्री, उत्तराखंड) का कहना है कि वन्यजीव अंचल होने से बाघ समेत वन्यजीवों की सुरक्षा में मदद मिलेगी। उप्र की तर्ज पर इस व्यवस्था को फिर से बहाल करने के मद्देनजर वन विभाग को जल्द से जल्द प्रस्ताव भेजने को कहा गया है। इसमें चार साल पहले के प्रस्ताव के बिंदुओं को शामिल करने को भी कहा गया है। कोशिश है कि इस साल ही यह व्यवस्था अस्तित्व में आ जाए।