लक्ष्य से दूर होते गए आर्थिकी के आधार पर्यटन, उद्यान, पावर प्रोजेक्ट
लंबे संघर्ष और कुर्बानियों के बाद उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया। राज्य बना तो हर उत्तराखंडी के चेहरे पर एक गौरवपूर्ण मुस्कुराहट थी। यह लगा हमने अपने जीवन की सबसे बड़ी धरोहर पा ली है। राज्य बनते समय हम यह मानते थे कि पर्यटन, उद्यान और जल विद्युत परियोजनाएं हमारे अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार बनेंगी, मगर आर्थिकी के ये आधार लक्ष्य से दूर होते चले गए। कुछ ऐसे कार्य थे, जिन्हें पूरा कराने में राज्य की नौकरशाही ने भी हमें निराश किया। शिक्षा से लेकर भर्तियों तक की संस्थाओं के स्तर में गिरावट आई। उत्तराखंड लोकायुक्त से वंचित रह गया। कानून व्यवस्था की स्थिति में गिरावट आई। परिसंपत्तियों के विवाद भी नहीं सुलझ पाए, लेकिन हम आशावान हैं, क्योंकि हमारे पास अद्भुत मानव शक्ति है, जो हर चुनौती का सामना कर सकती है। उत्तरप्रदेश के समय हम सभी मिलकर सपने देखते थे कि काश हम भी अपने राज्य की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार कानून बनाएं और यहां के निवासियों की आकांक्षाओं के अनुसार उन नीतियों को जमीन पर उतारें, इसलिए हमने अलग राज्य के लिए आंदोलन किया। राज्य के इतिहास में विकासपरक मौके आए हैं, जिनमें प्रशासन तंत्र ने हमें संतोष प्रदान किया है।
हम गुणवत्ता पैदा नहीं कर पाए
राज्य के स्थानीय निवासियों की इन तीनों महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हिस्सेदारी लगातार घट रही है। हमारी संस्थाएं विशेष तौर पर हमारे विवि के शैक्षिक व अनुसंधानिक स्तर में गिरावट आई है, वह चिंतनीय है। इनमें मेडिकल शिक्षा से लेकर तकनीकी व औपचारिक शिक्षा तक का क्षेत्र शामिल है। शिक्षा के इन क्षेत्रों में विस्तार हमने जरूर किया है, मगर हम गुणवत्ता पैदा नहीं कर पाए।
परीक्षाओं को लेकर जो गड़बड़ियां सामने आई हैं, उसमें राज्य लोकसेवा आयोग से लेकर अधीनस्थ सेवा चयन आयोग और दूसरी संस्थाएं, राज्य की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाई हैं। राजकीय सेवाओं में भर्तियों को लेकर जो चिंतनीय स्थिति बनी हुई है, वह झकझोरती है। हम लोकायुक्त की संस्था को केवल माननीय गवर्नर की टेबल तक पहुंचा पाए, मगर उनका अनुमोदन प्राप्त नहीं कर पाए।
इसलिए आज भी राज्य लोकायुक्त से वंचित है। राज्य कर्ज के बोझ से निरंतर दब रहा है। 2016 में कर्ज 40,000 करोड़ के आसपास था, जिसमें राज्य बनते वक्त का लगभग 11,000 करोड़ भी शामिल था, मगर पिछले आठ वर्षों के अंदर कर्ज एक लाख करोड़ के लगभग पहुंच चुका है। आय के संसाधन बढ़ाने की कोई कोशिश नहीं हो रही है।
पिछले छह वर्षों में केवल पलायन आयोग बना
2016-17 में हमारी राजस्व वृद्धि दर 19.50 प्रतिशत वार्षिक थी, जो घटकर 10 प्रतिशत वार्षिक पर आ गई है। इसका मतलब है कि 2016-17 के बाद आय के संसाधन बढ़ाने की कोई कोशिश नहीं हुई। यहां तक की हंगर इंडेक्स में भी हमारी स्थिति चिंतनीय है। पर प्रतिव्यक्ति आय जो 71,000 वार्षिक से 2014-15, 16 व 2017 में बढ़कर 1,73,000 प्रति व्यक्ति वार्षिक तक पहुंची थी, अब दो लाख के आस-पास ठहर गई है।
बेरोजगारी देश में उत्तराखंड के अंदर सर्वाधिक है। अग्निवीर योजना उत्तराखंड के नौजवानों के लिए एक बड़ा धक्का सिद्ध हुई है। जिला योजना आकार निरंतर घट रहा है। पलायन को रोकने के लिए पिछले छह वर्षों में केवल पलायन आयोग बना है। पूर्ववर्ती सरकार में इस दिशा में प्रारंभ की गई कई योजनाओं को ठप कर या उनका स्वरूप बदलकर पलायन को और बढ़ाया है।
2014-15 व 2016 में जिस रणनीति का सहारा उस समय की सरकार ने लिया था वह रणनीति बहुत सुविधापूर्वक भुलाई जा रही है। मैदानी कृषि में ठहराव व पर्वतीय कृषि और बागवानी में आई चिंताजनक गिरावट राज्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन रही है। हमारे पास इन चुनौतियों का समाधान है, लेकिन समझपूर्ण, सुविचारित योजना और संकल्प शक्ति का अभाव दिखाई दे रहा है।
असंतुलित विकास राज्य के सामने कई सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक समस्याओं को पैदा कर रहा, जो चिंतनीय है, लेकिन यह भी सत्य है कि हमारे पास अद्वितीय मानव शक्ति है। हमारे लोग जहां खड़े होते हैं, वहां से लकीर बनाने की उनकी क्षमता, हमारे गौरव व आत्मविश्वास को बढ़ाती है।