UCC में लिव-इन संबंधों के पंजीकरण पर हाईकोर्ट की टिप्पणी, अगली सुनवाई 1 अप्रैल को
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नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड के यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) में लिव-इन संबंधों के अनिवार्य पंजीकरण को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की। अदालत ने इस दौरान कहा कि जब बिना शादी किए खुले तौर पर साथ रह रहे हैं, तो फिर निजता के हनन का सवाल कहां है।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के तर्कों पर सवाल उठाते हुए कहा कि राज्य सरकार ने साथ रहने पर कोई रोक नहीं लगाई है, बल्कि सिर्फ पंजीकरण की बात कही है। कोर्ट ने कहा, “जब पड़ोसी, समाज और पूरी दुनिया को पता है कि आप साथ रह रहे हैं, तो यह गोपनीयता का उल्लंघन कैसे हुआ?”
याचिकाकर्ता देहरादून निवासी जय त्रिपाठी के वकील ने दलील दी कि यह प्रावधान लिव-इन संबंधों को सार्वजनिक कर “गपशप को संस्थागत रूप” दे रहा है। साथ ही, 2017 के सुप्रीम कोर्ट के निजता से जुड़े फैसले का हवाला देते हुए इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया।
याचिकाकर्ता ने अल्मोड़ा में एक युवक की हत्या का जिक्र करते हुए कहा कि लिव-इन संबंधों के कारण हिंसा की घटनाएं हो सकती हैं। हाईकोर्ट ने इस याचिका को अन्य लंबित याचिकाओं के साथ जोड़ते हुए अगली सुनवाई के लिए 1 अप्रैल की तारीख तय कर दी है।