लाइन लॉस से यूपीसीएल को 200 करोड़ से ऊपर की हानि
विद्युत आपूर्ति में होने वाले लाइन लॉस से यूपीसीएल को इस बार 200 करोड़ से ऊपर की हानि होगी। नियामक आयोग ने यूपीसीएल का प्रस्ताव निरस्त करते हुए 13.5 प्रतिशत लाइन लॉस के आधार पर ही टैरिफ तय किया है। यूपीसीएल ने अपने टैरिफ प्रस्ताव में 16.9 प्रतिशत से ऊपर लाइन लॉस बताया था। इसी हिसाब से बिजली दरों के माध्यम से इसकी वसूली का प्रावधान किया था। नियामक आयोग ने स्पष्ट किया कि 2024-25 के लिए लाइन लॉस 13.5 प्रतिशत मानी गई हैं, जो यूपीसीएल की ओर से 31 मार्च 2022 को जारी व्यापार योजना के आदेश के हिसाब से आंकलित की गई है। इसी दर पर टैरिफ में नियामक आयोग ने प्रावधान किया है। लाइन लॉस का प्रतिशत कम करने की वजह से यूपीसीएल को 200 करोड़ से ऊपर का खर्च खुद वहन करना होगा।
ये होता है लाइन लॉस
बिजली की आपूर्ति के दौरान होने वाली हानि को लाइन लॉस कहा जाता है। यह दो तरह की होती है। पहली टेक्निकल लॉस। इस लॉस का कारण करंट पर निर्भर करता है। जैसे-जैसे लोड बढ़ता है, यह लॉस भी बढ़ता जाता है, इसलिए हाई वोल्टेज में भी ट्रांसमिशन किया जाता है। दूसरा कॉमर्शियल लॉस होता है, जो बिजली चोरी, खराब मीटर, सही रीडिंग आदि न होने पर होता है। हालांकि, यूपीसीएल लगातार लाइन लॉस का स्तर कम लाने का दावा करता रहा है।
बिजली खरीद की भी पुख्ता व्यवस्था नहीं
यूपीसीएल ने वैसे तो नियामक आयोग के आदेश पर बिजली खरीद के लिए निदेशक अजय अग्रवाल की अगुवाई में सेल का गठन किया है, लेकिन खरीद में लंबी अवधि के पॉवर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए) अपेक्षाकृत कम हैं। बिजली की मांग के सापेक्ष यूपीसीएल लगातार रियल टाइम मार्केट या इंडियन एनर्जी एक्सचेंज से बिजली खरीद रहा है जो काफी महंगी साबित हो रही है। नियामक आयोग के सचिव नीरज सती का मानना है कि यूपीसीएल को लांग टर्म व मीडियम टर्म बिजली खरीद पीपीए पर ज्यादा फोकस करना होगा।
यूपीसीएल ने 2022-23 की जो रिपोर्ट रखी है, उसके हिसाब से लाइन लॉस करीब 17 फीसदी तक पहुंचना चिंताजनक है। हम 13.5 से ऊपर नहीं जा सकते। लिहाजा, बाकी पूरा हर्जाना यूपीसीएल पर बोझ बनेगा। इस दिशा में सुधार की जरूरत है। -नीरज सती, सचिव, उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग