टूटी दीवारें, टपकती छतें: पहाड़ के बच्चे ऐसी स्कूलों में भविष्य कैसे बनाएँ?

अल्मोड़ा – ताड़ीखेत क्षेत्र के कर्चुली और खुशालकोट के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की खराब हालत उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है। फोकस कीवर्ड: उत्तराखंड सरकारी स्कूल। टूटती दीवारें, टपकती छतें और बैठने की उचित व्यवस्था तक न होना—ये हालात विकास और सुधार के सरकारी दावों के बिल्कुल उलट तस्वीर दिखाते हैं।
अल्मोड़ा जिले में 1,196 प्राथमिक विद्यालय हैं, जिनमें से कई बुनियादी सुविधाओं जैसे शौचालय, पेयजल और सुरक्षित कक्षाओं तक से वंचित हैं। बारिश में पानी छतों से भीतर आने लगता है, जिससे बच्चों को कभी बाहर तो कभी घर लौटना पड़ता है। कर्चुली और खुशालकोट के स्कूलों में यह संकट इतना बढ़ गया है कि छात्र संख्या लगातार घट रही है। गांवों का खाली होना इस बात का सबूत है कि शिक्षा व्यवस्था ही परिवारों को पलायन की ओर धकेल रही है।
सरकारी घोषणाएँ और वादे कई बार हुए, लेकिन जमीनी सुधार नदारद है। जर्जर भवन, शिक्षक की कमी और एक शिक्षक पर कई कक्षाओं का बोझ—ये सभी मिलकर शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं। जब शिक्षक विभागीय कार्यों में व्यस्त होते हैं या अनुपस्थित रहते हैं, तो पूरा स्कूल ठप हो जाता है।
शिक्षा अधिकारी हरेन्द्र साह का कहना है कि मरम्मत और खाली पदों से संबंधित प्रस्ताव उच्चाधिकारियों को भेज दिए गए हैं। लेकिन अभिभावक कहते हैं कि ऐसे आश्वासन वर्षों से मिलते रहे हैं, सुधार अब तक दिखाई नहीं देता।
खुशालकोट निवासी त्रिलोक महरा बताते हैं कि स्कूल की दीवारें और छत इतनी खराब थीं कि बच्चे अंदर बैठने से भी डरते थे। टूटी छत, उखड़ा फर्श और दरारों से भरी दीवारों ने अभिभावकों को मजबूर कर दिया कि वे बच्चों को शहर भेजें या पलायन करें।
इसे भी पढ़ें – SIR में बीएलओ की मदद को बूथ लेवल अवेयरनेस ग्रुप बनाने के आदेश
उत्तराखंड सरकारी स्कूल की यह स्थिति सवाल उठाती है कि जब बुनियादी शिक्षा ही सुरक्षित नहीं, तो पलायन कैसे रुकेगा? और पहाड़ के बच्चों को सुरक्षित व सम्मानजनक शिक्षा कब मिलेगी?




