किशोरावस्था में विवाह पर चिंतित हुआ हाईकोर्ट, सरकार से जागरूकता योजना पेश करने को कहा

नैनीताल, 4 जुलाई – उत्तराखंड हाईकोर्ट ने किशोरावस्था में हो रहे विवाहों पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए राज्य सरकार को निर्देशित किया है कि इस सामाजिक प्रवृत्ति को रोकने के लिए विशेष जागरूकता अभियान चलाया जाए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बालिग होने से पहले विवाह न केवल बच्चों के भविष्य के लिए घातक है, बल्कि कई बार इससे जुड़े युवक-युवती कानूनी संकटों में भी फंस जाते हैं। पूर्व सुनवाई में कोर्ट ने राज्य के बाल कल्याण सचिव चंद्रेश कुमार यादव को तलब किया था। आज (गुरुवार को) वह कोर्ट में पेश हुए। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने सचिव को दो सप्ताह के भीतर बाल विवाह और पॉक्सो अधिनियम से संबंधित जागरूकता अभियान की योजना बनाकर कोर्ट में प्रस्तुत करने के निर्देश दिए।
कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान चिंता जताई कि बढ़ती संख्या में किशोर युवक-युवतियां विवाह कर रहे हैं और फिर सुरक्षा की मांग को लेकर हाईकोर्ट का रुख कर रहे हैं। इनमें से कई मामलों में लड़कियां नाबालिग पाई जाती हैं, जिससे युवक पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराधी बन जाता है और विवाहिता अकेली रह जाती है। कई बार ऐसे मामलों में बच्चा भी जन्म ले लेता है, लेकिन बाद में युगल अलग हो जाते हैं और बच्चा निराश्रित हो जाता है।
कोर्ट के निर्देश
- दो सप्ताह में एक विस्तृत जागरूकता योजना बनाकर कोर्ट में पेश करें।
- योजना में पॉक्सो अधिनियम की गंभीरता और किशोर विवाह के दुष्परिणाम बताने पर ज़ोर हो।
- शिक्षा, ग्रामीण विकास, आंगनवाड़ी, स्थानीय प्रशासन और पैरालीगल स्वयंसेवकों की मदद से संवेदनशील क्षेत्रों में अभियान चलाया जाए।
- नाटक, लघु फिल्में, सामुदायिक संवाद जैसे प्रभावी माध्यमों का उपयोग किया जाए।
- अभिभावकों को विशेष रूप से जागरूक किया जाए ताकि वे बच्चों का सही मार्गदर्शन कर सकें।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी, जिसमें सरकार को अपनी कार्ययोजना के साथ प्रस्तुत होना होगा। कोर्ट ने कहा कि यह केवल एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय मुद्दा भी है, जिससे भविष्य की पीढ़ियों की दिशा तय होती है।