उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कहा: अन्य राज्यों की एससी महिलाएँ विवाह के बाद भी आरक्षण नहीं पाएँगी

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कहा: अन्य राज्यों की एससी महिलाएँ विवाह के बाद भी आरक्षण नहीं पाएँगी

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण आदेश दिया कि अन्य राज्यों की एससी महिलाएँ विवाह के बाद भी उत्तराखंड में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकतीं। अदालत ने स्पष्ट किया कि एससी/एसटी आरक्षण राज्य-विशेष अधिकार है और विवाह या निवास परिवर्तन से यह अधिकार स्वतः प्राप्त नहीं होता। यह निर्णय राज्य सरकार के 16 फरवरी 2004 के आदेश पर आधारित है। यह उच्च न्यायालय आरक्षण निर्णय भविष्य के ऐसे मामलों के लिए भी दिशा निर्धारित करता है।

मामला अंशु सागर से जुड़ा था, जो उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद की रहने वाली हैं और जतव समुदाय से आती हैं। विवाह के बाद उन्होंने उत्तराखंड में जाति और स्थायी निवासी प्रमाणपत्र बनवाया तथा प्राथमिक शिक्षक भर्ती में आरक्षण का दावा किया।

लेकिन शिक्षा विभाग ने उनका दावा खारिज कर दिया। उन्होंने इस निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दी। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने तर्क दिया कि जाति जन्म से तय होती है और केवल विवाह के आधार पर किसी व्यक्ति को दूसरे राज्य में आरक्षण नहीं दिया जा सकता।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकल पीठ ने याचिकाएँ खारिज करते हुए कहा कि अन्य राज्यों से आने वाले व्यक्तियों को यहाँ आरक्षण देना संवैधानिक सिद्धांतों के विरुद्ध होगा। अदालत ने यह भी कहा कि यदि ऐसे दावों को स्वीकार किया गया तो आरक्षण की संरचना प्रभावित होगी और स्थानीय पात्र वर्गों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।

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निर्णय में यह भी स्पष्ट किया गया कि भविष्य में विवाह या निवास परिवर्तन के आधार पर आरक्षण की मांग स्वतः मान्य नहीं होगी। किसी भी दावे में व्यक्ति के मूल राज्य की एससी/एसटी सूची ही प्राथमिक मानी जाएगी।

Saurabh Negi

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