उत्तराखंड की 10,000 से अधिक पंचायतें फिलहाल खाली, अध्यादेश अटका तकनीकी पेच में

उत्तराखंड की 10,000 से अधिक पंचायतें फिलहाल खाली, अध्यादेश अटका तकनीकी पेच में

उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायतें—ग्राम, क्षेत्र और जिला स्तर की—इस समय प्रशासनिक शून्यता की स्थिति में पहुंच गई हैं। हरिद्वार को छोड़कर राज्य की लगभग 10,760 पंचायतों में नियुक्त प्रशासकों का छह महीने का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, लेकिन अब तक चुनाव नहीं हो सके हैं और न ही प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति हो पाई है।

इस स्थिति से निपटने के लिए राज्य सरकार ने पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर पुनः प्रशासक नियुक्त करने हेतु अध्यादेश राजभवन भेजा था, लेकिन विधायी विभाग ने इसे तकनीकी आधार पर वापस कर दिया। विभाग ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के एक निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि पहले लौटा दिए गए अध्यादेश को उसी रूप में दोबारा लाना संविधान की भावना के विपरीत होगा।

गौरतलब है कि साल 2021 में हरिद्वार जिले की पंचायतों में भी प्रशासकों का कार्यकाल खत्म होने के बाद ऐसा ही अध्यादेश लाया गया था, लेकिन बाद में चुनाव करवा दिए गए और वह अध्यादेश कभी विधानसभा में पारित नहीं हो पाया। इसी मिसाल को आधार बनाकर मौजूदा अध्यादेश पर आपत्ति जताई गई है।

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अब राज्य सरकार ने उसमें कुछ संशोधन कर पुनः राजभवन भेजा है, लेकिन मंजूरी मिलने में देरी की आशंका बनी हुई है। इस तकनीकी पेच के कारण राज्य की पंचायतों में विकास कार्य, योजनाओं का क्रियान्वयन और प्रशासनिक निर्णय पूरी तरह रुके हुए हैं।

फिलहाल स्थिति यह है कि प्रदेश की 7478 ग्राम पंचायतें, 2941 क्षेत्र पंचायतें और 341 जिला पंचायतें बिना किसी प्रशासनिक प्रमुख के खाली हैं। हरिद्वार जिले की 318 ग्राम पंचायतों को छोड़कर सभी पंचायतों में यह रिक्तता पैदा हो चुकी है।

स्थानीय विकास, जनसेवा, और ग्रामीण योजनाओं के संचालन में यह ठहराव गंभीर चिंता का विषय बन गया है।

Saurabh Negi

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