RTI से खुलासा: देवप्रयाग और जोशीमठ के गांवों में बाहरी राज्यों द्वारा ज़मीन खरीद, धामी सरकार के भू कानून पर उठा सवाल

RTI से खुलासा: देवप्रयाग और जोशीमठ के गांवों में बाहरी राज्यों द्वारा ज़मीन खरीद, धामी सरकार के भू कानून पर उठा सवाल

देहरादून, 10 जुलाई — उत्तराखंड के मूल निवासियों की ज़मीन और अस्मिता से जुड़ा मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। मूल निवास भू-कानून संघर्ष समिति द्वारा सूचना के अधिकार (RTI) के तहत जुटाई गई जानकारी से खुलासा हुआ है कि जोशीमठ और देवप्रयाग जैसे अति संवेदनशील क्षेत्रों के आस-पास के गांवों में बड़ी संख्या में बाहरी राज्यों — बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पश्चिम बंगाल के लोगों द्वारा ज़मीन खरीदी गई है। RTI के अंतर्गत मिले दस्तावेज़ों में स्पष्ट रूप से दिखाया गया है कि किन-किन बाहरी नागरिकों ने स्थानीय क्षेत्रों में कितनी जमीनें खरीदी हैं। नीचे दिया गया चित्र RTI के उसी दस्तावेज का हिस्सा है, जिसमें खरीदारों की सूची और उनका मूल राज्य दर्ज है।

मूल निवास भू-कानून संघर्ष समिति के अनुसार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा सरकार द्वारा लाया गया भू-कानून इतना कमजोर और दिशाहीन है कि वह स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा करने में असफल हो रहा है। मूल निवास भू-कानून संघर्ष समिति का कहना है कि “5 एकड़” की शर्त को हटाना, पत्रकारों, अधिवक्ताओं, डॉक्टरों और अन्य पेशेवरों को भूमि खरीद की छूट देना दरअसल एक तरह से बाहरी पूंजीपतियों के लिए प्रदेश की ज़मीन का दरवाज़ा खोलने जैसा है। समिति ने इस आधार पर प्रदेश सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा सरकार ने जानबूझकर एक कमजोर भू-कानून बनाकर स्थानीय निवासियों के हक और अस्तित्व से खिलवाड़ किया है। यदि सरकार ने इस पर गंभीर रुख नहीं अपनाया, तो यह आने वाले वर्षों में जनसांख्यिकीय असंतुलन, सांस्कृतिक क्षरण और आर्थिक विस्थापन को जन्म देगा।

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समिति के पदाधिकारियों का दावा है कि उन्होंने RTI के माध्यम से जो दस्तावेज एकत्र किए हैं, वे साफ तौर पर दिखाते हैं कि माँ गंगा की पावन स्थली देवप्रयाग और धार्मिक दृष्टि से अति संवेदनशील क्षेत्रों — जोशीमठ और बद्रीनाथ — में बाहरी राज्यों के लोगों की भूमि खरीददारी तेजी से बढ़ रही है, जिससे यह स्पष्ट है कि सरकार का भू-कानून न तो पर्याप्त है और न ही पारदर्शी।  स्थानीय युवाओं और सामाजिक संगठनों में इस मुद्दे को लेकर गहरा रोष है और इसे मूल निवासी विरोधी नीति करार दिया जा रहा है।

बद्रीनाथ और जोशीमठ जैसे धार्मिक और पर्यावरणीय रूप से अति संवेदनशील क्षेत्रों में बाहरी व्यक्तियों द्वारा भूमि अधिग्रहण को लेकर विशेषज्ञ भी चिंतित हैं। यदि स्थिति पर लगाम न लगी, तो प्रदेश की जनसांख्यिकीय संरचना, संस्कृति और संसाधनों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।RTI दस्तावेज़ों के ज़रिये अब यह कोई अनुमान नहीं बल्कि साक्ष्य आधारित तथ्य बन चुका है कि राज्य में भू-कानून एक अहम राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा है। मुख्यमंत्री और शासन को अब जनता के विश्वास की रक्षा हेतु मजबूत और पारदर्शी भू-कानून की दिशा में निर्णायक कदम उठाने होंगे।

प्रश्न यह उठता है कि जब पूरे राज्य में बेरोजगारी, पलायन और खेती योग्य भूमि की कमी जैसी समस्याएं वर्षों से बनी हुई हैं, तो फिर सरकार ऐसे कानून क्यों बना रही है जो स्थानीय लोगों को और अधिक हाशिए पर धकेल दे?

Saurabh Negi

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