उत्तरकाशी में दोहरी आपदा का खतरा, हर्षिल सैन्य कैंप और तेलगाड के मुहाने पर मलबा अब भी जमा
उत्तरकाशी में आपदा में हर्षिल सैन्य कैंप और हेलिपैड को तबाह करने वाली तेलगाड के मुहाने पर जमा मलबा, स्थानीय लोगों और प्रशासन के लिए बड़ा सिरदर्द बना हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मलबा कभी भी एक नई आपदा को जन्म दे सकता है, लेकिन हालात से निपटने की तैयारी उतनी नज़र नहीं आ रही।
धराली में 5 अगस्त को खीरगंगा ने कहर बरपाया, जिसकी (धराली) जड़ें सात-आठ साल पुरानी हैं। आसपास के बुग्यालों की ज़मीन में लगातार कटाव हो रहा था, जो 2019 के बाद से तेज़ हो गया। भारी बारिश और ग्लेशियर के पिघलने से जमा मलबा आखिरकार बहाव में आकर तबाही का कारण बना। यही कहानी अब तेलगाड के ऊपर भी दोहराई जा रही है।
तेलगाड और भागीरथी का संगम क्षेत्र सबसे अधिक संवेदनशील है, क्योंकि यहां नदी का स्पैन बहुत कम है। ऐसे में, मुहाने पर मौजूद मलबा और पानी एक बार फिर झील बनने की स्थिति पैदा कर सकता है। वरिष्ठ भूवैज्ञानिक प्रो. वाईपी सुंद्रियाल ने चेतावनी दी है कि नदी के मुहाने पर मलबा जमा रहना भविष्य में बड़े खतरे का संकेत है। ऊपरी हिमालयी क्षेत्र में पिघलते ग्लेशियर इन हालात को और संवेदनशील बना रहे हैं।
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स्थानीय लोग और सेना अब भी बीते नुकसान से उबरने की कोशिश में हैं, लेकिन अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो उत्तरकाशी एक और प्राकृतिक संकट झेलने को मजबूर हो सकता है।