उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू आज तीर्थनगरी हरिद्वार पहुंचे, किया दक्षिण-एशियाई देश शांति व सुलह संस्थान का उद्घाटन
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू आज शनिवार को तीर्थनगरी हरिद्वार पहुंचे हैं। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने यहां गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में दक्षिण एशियाई देश शांति एवं सुलह संस्थान का उद्घाटन किया।
सभी क्षेत्रों में लहरा रहा है भारतीय संस्कृति का परचम
बताया गया कि इस संस्थान के निर्माण का उद्देश्य दक्षिण एशियाई देशों के बीच आपसी सद्भाव, समन्वय में और बेहतर संबंध स्थापित बनाए रखना है। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने देव संस्कृति विश्वविद्यालय में सेंटर ऑफ बाल्टिक स्टडीज अंतर्गत दक्षिण एशियाई शांति एवं सुलह संस्थान का उद्घाटन किया।
इस दौरान उन्होंने कहा कि इससे न केवल हमारी और बाल्टिक देशों की संस्कृति मजबूत होगी, बल्कि औपनिवेशिक काल के कारण दबी विरासतों के लिये अनुसंधान भी प्रोत्साहित होंगे। भारत के सांस्कृतिक संबंध एशिया के सभी देशों से रहे हैं। सभी क्षेत्रों में भारतीय संस्कृति का परचम लहरा रहा है।
बाल्टिक संस्कृति में भी पृथ्वी एवं प्रकृति की पूजा की जाती है
भारतीय एवं बाल्टिक देशों की संस्कृति की समानता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बाल्टिक संस्कृति में भी पृथ्वी एवं प्रकृति की पूजा की जाती है। उन्होंने कहा कि बाल्टिक सेंटर के माध्यम से संयुक्त प्रकाशनों, सीखने के संसाधनों, अनुसंधानिक गतिविधियों के आदान-प्रदान को भी संयुक्त रूप से बढ़ावा मिलेगा। देव संस्कृति विश्वविद्यालय अन्य विदेशी संस्थाओं के साथ मिलकर योग और ध्यान का प्रचार-प्रसार कर रहा है जो प्रशंसनीय है।
कहा कि योग धर्म, जाति और राष्ट्रीयता से ऊपर उठकर है। यह मानवीय दर्शन है जो जीवन को अधिक संतुलित बनाता है, अर्थपूर्ण बनाता है। उपराष्ट्रपति ने मातृ भाषा को प्रोत्साहित करने पर जोर देते हुए प्राथमिक शिक्षा और सरकारी कामकाज के अलावा न्यायपालिका के कामकाज में भी मातृ भाषा के प्रयोग पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। इसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए।
कहा कि समाज के सभी वर्गों को शिक्षा से जोड़ना होगा। शिक्षा का भारतीयकरण ही नई शिक्षा नीति का उद्देश्य रहा है। उन्होंने उदाहरण देते कहा कि भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश से लेकर प्रधानमंत्री मातृ भाषा में ही शिक्षा ग्रहण कर देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन हैं। विविधता में एकता भारत की विशेषता रही है। मैकाले शिक्षा पद्धति को छोड़ हमें अपने बच्चों को गुलामी की मानसिकता से दूर भारतीय संस्कृति और परंपरा से अवगत कराना होगा, तभी उनका भविष्य उज्ज्वल होगा।
इससे पूर्व उपराष्ट्रपति ने प्रज्ञेश्वर महाकाल में जलाभिषेक किया और परिसर में रुद्राक्ष का पौधा भी रोपा। पूजन उपरांत शौर्य दीवार पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। आचार्य श्रीराम शर्मा और भगवती देवी को स्मरण किया। कार्यक्रम में राज्यपाल मेजर जनरल गुरमीत सिंह ने कहा कि यहां आकर मंदिर में आने जैसे अनुभव हो रहा है। उन्होंने संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार पर जोर दिया।
कहा कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है, संस्कृत में भारत का हृदय है। इस अवसर पर देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डाक्टर चिन्मय पंड्या, कुलपति डाक्टर शरद पारधी आदि मौजूद रहे। उपराष्ट्रपति ने शांतिकुंज की नई वेबसाइट का लोकार्पण भी किया। कुलपति और प्रति कुलपति ने उन्हें गंगाजल और रुद्राक्ष का पौधा स्मृति स्वरूप भेंट किया।