बघेल कराना चाहते थे कल्लूरी को बर्ख़ास्त फिर क्यों दी अहम ज़िम्मेदारी?
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने आईपीएस अधिकारी शिवराम प्रसाद कल्लूरी को एंटी करप्शन ब्यूरो और इकनॉमिक ऑफ़ेंस विंग जैसे अहम विभाग का आईजी नियुक्त किया है. शिवराम प्रसाद कल्लूरी भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क़रीबी माने जाते हैं और कांग्रेस पार्टी उन्हें बर्खास्त करने की मांग करती रही थी.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी विपक्ष में रहते हुए कल्लूरी के ख़िलाफ़ लगातार लड़ाई लड़ते रहे थे. कई अवसरों पर उन्होंने कल्लूरी को जेल में डालने की मांग भी उठाई थी. लेकिन अब उन्हीं शिवराम प्रसाद कल्लूरी की इस महत्वपूर्ण पद पर पोस्टिंग को लेकर राजनीतिक और मानवाधिकार संगठन चकित हैं.
राज्य के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने पत्रकारों से कहा है कि ये पदस्थापना मुख्यमंत्री कार्यालय से की गई है. दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी ने स्वीकार किया है कि कल्लूरी के ख़िलाफ़ गंभीर शिकायतें रही हैं. कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता शैलेश नितिन त्रिवेदी ने बीबीसी से कहा, “बस्तर में रहते हुए एसआरपी कल्लूरी के ख़िलाफ़ कई गंभीर शिकायतें आईं और विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस पार्टी ने उन मामलों को उजागर भी किया. कांग्रेस के उठाए गए मामलों के कारण ही बस्तर में सरकारी आतंकवाद पर अंकुश लग सका. रोक लग सकी.”
शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा कि शिवराम प्रसाद कल्लूरी पुलिस अधिकारी के तौर पर सेवारत हैं. इसलिए स्वाभाविक रूप से दूसरे अधिकारियों की तरह बिना किसी भेदभाव के उन्हें भी नई ज़िम्मेदारी दी गई है.त्रिवेदी ने कहा कि कल्लूरी को कोई महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी नहीं दी गई है और बस्तर से या माओवाद के नियंत्रण से दूर रखकर उन्हें इकनॉमिक ऑफेंस विंग जैसी संस्था में तैनात किया गया है, जिसे पुलिस लूप लाइन मानती है.
लेकिन पिछली भाजपा सरकार में राज्य के गृह मंत्री रहे रामसेवक पैंकरा ने बीबीसी से कहा, “कांग्रेस सरकार निहित स्वार्थ के कारण ऐसे अफ़सरों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठा रही है, जिससे उसके व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति हो सके.”
फ़रवरी 2017 में फ़र्ज़ी मुठभेड़ व आत्मसमर्पण और मानवाधिकार हनन की कई गंभीर शिकायतों के बाद उन्हें बस्तर से हटाया गया था. उनको पुलिस मुख्यालय में तैनात किया गया था लेकिन राज्य की भाजपा सरकार ने उन्हें लंबे समय तक कोई ज़िम्मेदारी नहीं सौंपी.
मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल का कहना है कि जिस अफ़सर को भारतीय जनता पार्टी तक ने सक्रिय ड्यूटी से इसलिए दरकिनार कर दिया था क्योंकि ‘स्थापित मानव अधिकार संस्थानों ने इनके कारनामों पर संदेह जताया था.’ उसे लेकर सरकार का ऐसा फ़ैसला एक ग़लत सन्देश देता है कि कांग्रेस पार्टी मानवाधिकारों और ख़ास कर अभिव्यक्ति की आज़ादी जैसे मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं है.
पीयूसीएल के अध्यक्ष डॉ. लाखन सिंह ने कहा कि कुछ महीने पहले तक वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बस्तर के आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी को ताड़मेटला मुठभेड़ में हत्या और बलात्कार के आरोप में गिरफ़्तार करने की मांग कर रहे थे और आज उन्हीं का ईओडब्ल्यू और एसीबी विभागों के नए आईजी के रूप में स्वागत किया जा रहा है- जबकि ये ऐसे पद हैं जहां सत्यनिष्ठा और ईमानदारी की अत्याधिक आवश्यकता होती है.
डॉ. लाखन सिंह ने कहा कि जिस सलवा-जुडूम को सुप्रीम कोर्ट ने ग़ैर-कानूनी और ग़ैर-संवैधानिक घोषित किया था, शिवराम प्रसाद कल्लूरी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी सलवा जुड़ूम के पक्ष में लगातार खड़े रहे.
डॉ. लाखन सिंह ने कहा, “ऐसे दागी पुलिस अफसरों की नियुक्ति को स्थगित कर, सुप्रीम कोर्ट के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश से एक विस्तृत जांच कराके, सरकार उनकी रपट और सिफ़ारिशों के आधार पर उचित कार्रवाई करे. जांच होने तक इन पुलिस अफ़सरों को सक्रिय ड्यूटी से अलग रखा जाए.”
1994 बैच के आईपीएस अधिकारी शिवराम प्रसाद कल्लूरी सरगुजा में अपनी तैनाती के दौरान माओवादियों के ख़िलाफ़ अभियान चलाने के बाद चर्चा में आए. कई माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया तो कई मुठभेड़ में मारे गए.
हालांकि सरगुजा में रहते हुए उन पर फर्ज़ी मुठभेड़ और बलात्कार के आरोप भी लगे. उन्होंने सरगुजा को कथित रूप से माओवादियों से मुक्त करने का भी दावा किया. हालांकि राज्य और केंद्र सरकार ने उनके दावे के विपरित इस इलाके को गंभीर रूप से माओवाद प्रभावित इलाकों में ही शामिल रखा.
शिवराम प्रसाद कल्लूरी को 2006 में भारत सरकार ने वीरता के लिए पुलिस मेडल से नवाजा. माओवादियों के ख़िलाफ़ आक्रामक रणनीति के कारण उन्हें राज्य की भाजपा सरकार ने नक्सल ऑपरेशन का डीआईजी बना कर दंतेवाड़ा भेजा था. यहां भी उन्होंने माओवादी मोर्चे पर कई सफलता हासिल की.
लेकिन 6 अप्रैल 2010 को माओवादियों ने हमला बोल कर ताड़मेटला में सीआरपीएफ के 76 जवानों की हत्या कर दी. माओवादी हिंसा के इतिहास में सुरक्षाबलों पर हुए अब तक के सबसे बड़े माओवादी हमले को लेकर कल्लूरी की आलोचना भी हुई.
इसी दौरान ताड़मेटला, मोरपल्ली और तिम्मापुरम में सुरक्षाबलों द्वारा तीन महिलाओं की हत्या, बलात्कार और 252 घरों को जलाए जाने की घटना से कल्लूरी फिर चर्चा में आए. कल्लूरी ने इसके लिये माओवादियों के जिम्मेदार ठहराया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने जांच की और पाया कि कल्लूरी के दावे के उलट हिंसा की इन घटनाओं को सुरक्षाबलों ने ही अंजाम दिया था.
ताड़मेटला, मोरपल्ली और तिम्मापुरम के आदिवासियों के लिए राहत सामग्री लेकर पहुंचे स्वामी अग्निवेश पर जब दोरनापाल में सलवा जुड़ूम समर्थकों ने हमला बोला तो आरोप लगे कि कल्लूरी के इशारे पर यह किया गया है. कल्लूरी को इन आरोपों के बाद बस्तर से हटा दिया गया.
2014 में एक बार फिर उन्हें बस्तर का आईजी बनाया गया. आत्मसमर्पण और मुठभेड़ों का सिलसिला एक बार फिर शुरू हुआ. कल्लूरी के हिस्से सर्वाधिक आत्मसमर्पण, गिरफ़्तारियां, मुठभेड़ दर्ज़ होती चलीं गईं.
प्रशंसा और आरोप
राज्य और केंद्र सरकार के लिए कल्लूरी एक सेलिब्रेटी का दर्ज़ा हासिल करते चले गए. देश में माओवाद के मोर्चे पर कल्लूरी के आकड़ों ने दोनों ही सरकारों के लिए गर्व के कई अवसर उपलब्ध कराए. बस्तर और रायपुर से लेकर दिल्ली तक उनके प्रशंसक तेज़ी से बढ़े. लेकिन इन सबके बीच कल्लूरी पर गंभीर आरोपों की फेहरिस्त भी लंबी होती चली गई.
बस्तर में काम करने वाले पत्रकार उनके निशाने पर रहे तो जगदलपुर लीगल एड की महिला अधिवक्ताओं को पुलिस संरक्षण में प्रताड़ना के कारण बस्तर ही छोड़ने को मज़बूर होना पड़ा. इसी तरह एक ग्रामीण की संदिग्ध माओवादियों द्वारा हत्या के मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर और जेएनयू की प्रोफेसर अर्चना प्रसाद समेत दूसरे लोगों के ख़िलाफ़ हत्या का मामला दर्ज़ कर लिया गया.
भारत में माओवाद के कारण और विकास के मुद्दे पर अध्ययन के लिये गठित केंद्र सरकार की कमेटी की सदस्य रही सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया के घर पर पुलिस के संरक्षण में चलने वाले संगठन के लोगों ने हमला बोला तो इसकी चर्चा देश भर में हुई. इसी तरह फर्ज़ी मुठभेड़, हत्या और बलात्कार के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई की जांच रिपोर्ट जब पेश हुई और सारे आरोप सुरक्षाबलों पर लगे तो पूरे बस्तर में पुलिसकर्मी सड़क पर उतर आए और उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ताओं के पुतले जला कर विरोध जताया. इस ‘पुलिस विद्रोह’ की भी आलोचना हुई और इस मामले में भी जांच शुरू की गई.
इसी तरह केंद्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी एक जांच के बाद पाया कि माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन में लगे सुरक्षाबलों द्वारा 16 महिलाओं के साथ बलात्कार, यौन और शारीरिक हमला किया गया. देश के अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग ने माना कि आदिवासियों के साथ सुरक्षाबलों ने गंभीर प्रताड़ना की है. संदिग्ध माओवादियों के कथित फर्ज़ी मुठभेड़ के कई मामले हाईकोर्ट की देहरी तक पहुंचने लगे.
इसके बाद फरवरी 2017 में स्वास्थ्य कारणों का हवाला दे कर कल्लूरी को बस्तर से हटाकर पुलिस मुख्यालय रायपुर में अटैच कर दिया गया. इस दौरान उन्हें भाजपा सरकार ने लंबे समय तक कोई ज़िम्मेदारी नहीं सौंपी. उल्टे अलग-अलग मामलों में उन्हें नोटिस ज़रुर जारी किया गया.
बस्तर की आदिवासी नेता सोनी सोरी कहती हैं, “शिवराम प्रसाद कल्लूरी ने बस्तर में लोकतंत्र की हत्या की है. हम सब जानते हैं कि उनके ख़िलाफ़ कितने गंभीर आरोप हैं और अगर सारे आरोपों की जांच हो तो मुझे पूरा विश्वास है कि वे जेल में रहेंगे. लेकिन उन्हें राज्य की कांग्रेस सरकार प्रश्रय दे कर साबित करना चाहती है कि कांग्रेस सरकार की भी लोकतंत्र को बचाने में कोई आस्था नहीं है.”