नई दिल्ली देश में उपभोक्ताओं के हित को सुरक्षित और संरक्षित रखने के लिए नया उपभोक्ता संरक्षण विधेयक संसद में लंबित है। अगर यह विधेयक कानून बन जाता है तो भ्रामक या गुमराह करने वाले विज्ञापनों का हिस्सा बनने वाली हस्तियों पर शिकंजा कसेगा। अभी विज्ञापनों में उत्पादों की तमाम खूबियां गिनाई जाती हैं जबकि गुणवत्ता के लिहाज से वह वास्तविकता से परे होती हैं। चूंकि उसकी खूबियां ऐसी हस्ती बताती है जिसकी जनमानस में अच्छी छवि होती है, लिहाजा लोग बिना किसी शंका के उस उत्पाद को खरीद लेते हैं। हालांकि इस्तेमाल करने पर वे छले महसूस करते हैं।

भ्रामक विज्ञापन
एफएसएसएआइ के मुताबिक किसी उत्पाद को तब भ्रामक माना जाता है जब उसे गलत तथ्यों, भ्रामक विज्ञापनों के सहारे प्रदर्शित या बेचा जाए। विज्ञापन में कही गई बातें उत्पाद लेबल पर दी गई जानकारी से मेल न खाए। लेबल पर खाद्य पदार्थ के विषय में जानकारी न उपलब्ध हो। इस श्रेणी में आने वाले सभी उत्पादों को भ्रामक माना जाता है।

भारतीय विधान
देश में उपभोक्ता हितों के सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए कई नियम-कानून हैं।

फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट
यदि कोई सेलेब्रिटी किसी खाद्य पदार्थ का भ्रामक विज्ञापन करता है तो फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट (एफएसएसएआइ) 2006 की धारा 2 (जेडएफ) के प्रावधान के तहत उसे दस लाख रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है। अभी तक यह देश का एकमात्र ऐसा कानून है जिसमें भ्रामक विज्ञापनों के लिए सेलेब्रिटी को जिम्मेदार ठहराने की व्यवस्था की गई है।

ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट
किसी ऐसी दवा का विज्ञापन नहीं किया जाएगा जो डायबिटीज, मोतियाबिंद जैसी बीमारियों के रोकथाम या इजाज का दावा करती हो। इस श्रेणी में मोटापा, गाल ब्लैडर में पथरी, कम लंबाई जैसी 50 बीमारियां शामिल हैं।

ड्रग एंड मैजिकल रैमेडीज (ऑब्जेक्शनेबल एडवर्टीजमेंट) एक्ट
इस कानून के अतंर्गत दवाओं के इस्तेमाल से संबंधित चार तरह के विज्ञापनों को प्रतिबंधित किया गया है। इसमें गर्भनिरोधक दवाएं और कैंसर, डायबिटीज, मोतियाबिंद, गठिया, ब्लडप्रेशर व एड्स जैसी बीमारियों के जांच व उपचार से संबंधित विज्ञापन शामिल हैं। उल्लंघन पर सजा का प्रावधान न होने की वजह से प्रभावशाली नहीं।

कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986
यदि किसी उत्पाद के विषय में विज्ञापन के जरिए कुछ ऐसे दावे किए जाते हैं जिसपर यह खरा नहीं उतरता तो यह छलपूर्ण कारोबारी गतिविधियों में आएगा। इस तरह के भ्रामक विज्ञापन की शिकायत करने पर इसे हटाने का आदेश दिया जा सकता है। इससे यदि कोई क्षति होती है तो विज्ञापनदाता को इसके लिए मुआवजा देना पड़ सकता है। विज्ञापनदाता को इसके सुधार के लिए दूसरा विज्ञापन जारी करने का आदेश दिया जा सकता है।

भारतीय मानक ब्यूरो
यदि कोई उत्पाद भारतीय मानक ब्यूरो से प्रमाणित है तो निर्माता इसके संबंध में किसी प्रकार का भ्रामक विज्ञापन नहीं चला सकता। यदि वह इसके संबंध में विज्ञापन चलाता है तो उत्पाद के विषय में वही बातें बतानी होंगी जिसके आधार पर सर्टिफिकेशन मिला हुआ है।

परदेश में प्रावधान
अमेरिका: यहां का फेडरल ट्रे़ड कमीशन किसी भी उत्पाद के विज्ञापन को लेकर बहुत सख्त है। हालांकि सामान्य नियम है कि विज्ञापनों में विज्ञापन करने वाले की ईमानदार राय, तथ्य, नतीजे, भरोसे, मान्यताएं की झलक होनी चाहिए। कई मामलों में यहां विज्ञापन करने से पहले सेलेब्रिटी द्वारा उत्पाद के इस्तेमाल किए जाने का भी नियम है। वास्तविकता से परे के दावे करने वाले विज्ञापनों के मामले में अगर जांच में झूठ पाया जाता है तो विज्ञापन करने वाला जिम्मेदार होता है।

चीन: चीन के फूड सेफ्टी लॉ में गुमराह करने वाले विज्ञापनों और सिफारिशों के लिए निर्माता, विज्ञापनदाता और विज्ञापनकर्ता को जिम्मेदार ठहराए जाने की व्यवस्था है।

दक्षिण कोरिया: यहां की स्व नियमन संस्थाओं के पास काफी अधिकार हैं। इन संस्थाओं के पास यह तय करने की ताकत है कि निर्माताओं द्वारा किस उत्पाद का विज्ञापन किया जा सकता है और किसका नहीं। यहां पर मेडिकल दवाओं का कोई सेलेब्रिटी विज्ञापन नहीं कर सकता है। कानून के किसी भी उल्लंघन की सूरत में निर्माता और विज्ञापन करने वालों को दंडित करने के कड़े नियम हैं।