डॉलर की कीमत ₹86 के पार क्यों पहुंची और मुद्रा की कीमत कैसे तय होती है?

डॉलर की कीमत ₹86 के पार क्यों पहुंची और मुद्रा की कीमत कैसे तय होती है?

डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत ₹86 के पार पहुंचने का मुख्य कारण वैश्विक और घरेलू आर्थिक परिस्थितियां हैं। अमेरिकी डॉलर की मजबूती, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, और आयात-निर्यात के असंतुलन के कारण भारतीय रुपये की विनिमय दर पर दबाव बढ़ा है। यह स्थिति मांग और आपूर्ति के आधार पर विनिमय दर तय होने के आर्थिक नियमों के अनुरूप है।

कैसे तय होती है किसी मुद्रा की कीमत?

  1. मांग और आपूर्ति:
    • किसी मुद्रा की कीमत इस पर निर्भर करती है कि उसकी कितनी मांग है।
    • यदि किसी देश की मुद्रा की मांग बढ़ती है (जैसे, विदेशी निवेश या व्यापार के कारण), तो उसकी कीमत बढ़ती है।
    • इसके विपरीत, अधिक आपूर्ति या मांग में गिरावट से कीमत कम हो जाती है।
  2. अंतरराष्ट्रीय व्यापार:
    • भारत को आयातित वस्तुओं और सेवाओं के लिए डॉलर में भुगतान करना पड़ता है।
    • जब आयात अधिक होता है और डॉलर की मांग बढ़ती है, तो रुपये की कीमत गिरने लगती है।
  3. आर्थिक नीतियां और निवेश:
    • अमेरिकी फेडरल रिजर्व (केंद्रीय बैंक) द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी डॉलर को मजबूत बनाती है।
    • वैश्विक निवेशक ऐसे समय में डॉलर में निवेश करना पसंद करते हैं, जिससे इसकी मांग बढ़ती है।
  4. राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता:
    • जिस देश की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक स्थिति मजबूत होती है, उसकी मुद्रा की मांग स्वाभाविक रूप से बढ़ती है।

डॉलर के मुकाबले रुपये का गिरना क्यों चिंताजनक है?

  • आयातित वस्तुओं (जैसे तेल, गैस, दवा) की कीमतें बढ़ जाती हैं।
  • महंगाई दर में वृद्धि होती है।
  • विदेश में पढ़ाई और यात्रा करना महंगा हो जाता है।
  • व्यापार घाटा बढ़ता है।

क्या है समाधान?

  • घरेलू उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देना।
  • विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • आर्थिक स्थिरता और मजबूत नीतियां लागू करना।

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