ई-कॉमर्स कम्पनियों की मांग, FDI लागू करने की तारीख बढ़ाई जाए

ई-कॉमर्स कम्पनियों की मांग, FDI लागू करने की तारीख बढ़ाई जाए

नई दिल्ली :  सरकार द्वारा हाल ही में ई-कामर्स की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति में जारी किए गए स्पष्टीकरण को लागू किए जाने की तारीख 1 फरवरी 2019 से आगे बढ़ाए जाने की कुछ ई-कॉमर्स कम्पनियों की मांग को कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्ज(कैट) ने बेतुका बताते हुए विरोध किया है.

वाणिज्य मंत्रालय के डीआईपीपी विभाग के सचिव श्री रमेश अभिषेक को रविवार को भेजे एक पत्र में कैट ने इस बारे में अपना कड़ा विरोध दर्ज किया है. साथ ही यह भी मांग की है कि इस नीति के अंतर्गत ई-कॉमर्स कम्पनियां प्राइवेट लेबल या अपने ब्रांड से सामान बेच सकती हैं या नहीं, इसको स्पष्ट किया जाए.

कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने सचिव अभिषेक को भेजे पत्र में कहा कि सरकार को किसी भी दबाव के आगे न झुककर किसी भी सूरत में तारीख को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि साल 2018 का प्रेस नोट-2 केवल 2016 की एफडीआई पॉलिसी के प्रेस नोट-3 का स्पष्टीकरण भर ही है और पॉलिसी 2016 से ही जारी है. पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं किया गया है, बल्कि पॉलिसी को स्पष्ट ही किया गया है.

इस नजरिए से डीआईपीपी द्वारा 1 फरवरी 2019 को अंकित करना सरकार की सरासर गलती है और इसलिए भी किसी भी तारीख को बदलना सरकार की एक और गलती होगी.

खंडेलवाल ने कहा की ई-कॉमर्स कम्पनियों द्वारा तारीख आगे बढ़ाने की मांग एक सोची-समझी चाल है और वे इसकी आड़ में पॉलिसी को लागू करने से रोकना चाहते हैं. जिससे लागत से भी कम दाम पर माल बेचने और बड़े डिस्काउंट देने का उनका कारोबार चलता रहे और वे देश के रीटेल बाजार पर अपना कब्जा जमा सकें.

उन्होंने कहा की सरकार इन कम्पनियों के किसी भी झांसे में न आए और किसी भी हालत में तारीख आगे न बढ़ाई जाए. खंडेलवाल ने पत्र में यह भी कहा कि प्राईवट लेबल या अपने ब्रांड से माल बेचने के जरिये से ई-कॉमर्स कम्पनियां मार्केट पर एकाधिकार का बड़ा खेल खेलती हैं. सरकार द्वारा 3 जनवरी को जारी एक परिपत्र में कई शंकाओं का समाधान किया गया है, लेकिन एक समाधान में प्राईवट लेबल या ब्रांड को जारी रखने पर भ्रम बन गया है.

उन्होंने इस पॉलिसी के अंतर्गत प्राईवेट लेबल या ब्रांड द्वारा माल बेचना जारी रहेगा या नहीं, इसे स्पष्ट किए जाने की मांग की है. अगर यह जारी रखा जाए तो फिर पॉलिसी का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा और ई-कॉमर्स में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और बराबरी के कारोबारी माहौल को स्थापित करने की सरकार की मंशा पूरी तरह खत्म हो जाएगी.

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