अब वन उपज पर वन विकास निगम वसूलेगा शुल्क

प्रदेश में वन उपज पर मंडी शुल्क वसूलने को लेकर मंडी परिषद और वन विकास निगम के बीच रार दूर हो गई है। अब वन उपज पर 2.5 प्रतिशत मंडी शुल्क वन विकास निगम वसूल करेगा। जिसमें निगम शुल्क से 10 प्रतिशत की कटौती कर शेष शुल्क मंडी परिषद को देगा। मंडी परिषद और निगम के बीच जल्द ही शुल्क वसूलने के लिए अनुबंध किया जाएगा।

उत्तराखंड कृषि उत्पाद मंडी (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 2011 के अनुसार पूर्व में वन विकास निगम के माध्यम से ही वन उपज पर 2.5 प्रतिशत शुल्क लिया जाता था। इसमें 2 प्रतिशत मंडी शुल्क और 0.5 प्रतिशत विकास सेस शामिल है। 2020 में प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार के मॉडल एक्ट कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम को लागू किया। जिसमें 2011 का मंडी एक्ट समाप्त हो गया था।

केंद्र के 2021 में तीन कृषि बिलों का वापस लेने के बाद प्रदेश सरकार ने उत्तराखंड कृषि उत्पाद मंडी (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 2011 को फिर से लागू कर लकड़ी को कृषि उत्पाद में अधिसूचित किया। तब से मंडी परिषद ही वन उपज पर मंडी शुल्क वसूली कर रही थी। मंडी समितियों को वन उपज पर लिए जाने वाले शुल्क से लगभग 15 करोड़ का राजस्व मिलता है। 2011 के एक्ट में प्रावधान है कि वन विकास निगम मंडी शुल्क वसूलेगा। जिसमें 10 प्रतिशत की कटौती के साथ शेष शुल्क का मंडी समितियों को भुगतान किया जाएगा। कृषि सचिव दीपेंद्र कुमार चौधरी ने वन विकास निगम के नीलामी डिपो से वन उपज पर मंडी शुल्क वसूलने के लिए 2011 की व्यवस्था पर कार्रवाई के लिए मंडी परिषद के प्रबंध निदेशक को नामित किया है।

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