मोबाइल की दीवानगी कम उम्र में बच्चों को बना रही बीमार, आंखों और दिमाग पर पड़ रहा प्रभाव

मोबाइल की दीवानगी कम उम्र में बच्चों को बना रही बीमार, आंखों और दिमाग पर पड़ रहा प्रभाव

हरिद्वार। मोबाइल की दीवानगी कम उम्र में बच्चों को बीमार बना रही है। इससे बच्चों की आंखों और दिमाग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। छोटी उम्र में ही ज्यादा वक्त मोबाइल पर बीतने से बच्चों में अनिंद्रा और चिड़चिड़ेपन की समस्या भी सामने आ रही है। वहीं किशोर उम्र के बच्चों में उत्तेजित होकर मारपीट की प्रवृत्ति बढ़ रही है। जानलेवा कदम उठाने से भी किशोर और किशोरियां परहेज नहीं कर रही हैं।

इंटरनेट क्रांति के दौर में मोबाइल ने हर आयु वर्ग को अपनी तरफ खींचा है। बच्चों से लेकर बड़े और बुजुर्गों का ज्यादा समय मोबाइल के साथ बीतता है। किसी भी चीज का हद से ज्यादा इस्तेमाल होने पर उसकी लत लग जाती है। वर्तमान में मोबाइल की लत आम बात हो चुकी है। रोते हुए छोटे बच्चों को चुप कराने के लिए मां-बाप पहले खुद ही मोबाइल का सहारा लेते हैं। इसके बाद उनको पता ही नहीं चलता और बच्चे धीरे-धीरे मोबाइल के लती हो जाते हैं।
यही वजह है कि तीन से चार और पांच साल की उम्र के बच्चे इशारों से मोबाइल चलाते हैं और ज्यादातर मां-बाप बच्चे को मोबाइल में एक्सपर्ट देखकर खुश होते हैं। लेकिन इसके दूसरे और नाजुक पहलू पर गौर करें तो मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों के मन, मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। घंटों मोबाइल पर निगाहें टिकी रहने से आंखों में धुंधलापन की शिकायतें अस्पताल में पहुंच रही हैं।
हालांकि मोबाइल का बहुत ज्यादा इस्तेमाल बड़ों के लिए भी नुकसानदायक है। मगर बच्चों के लिए यह बड़ों से भी कहीं ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। मोबाइल पर मारपीट और फायरिंग आदि के गेम खेलने वाले आठ से 12 साल की उम्र के बच्चों में अचानक तेज गुस्सा आना और झगड़ा करने की प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं। पहले समय में बच्चे दादी-नानी से कहानियां सुनकर अपनी कल्पना शक्ति का इस्तेमाल करते थे। जिससे उनका मानसिक विकास तेजी से होता था, पर अब बच्चे दादी-नानी तो दूर अपने माता-पिता से भी मोबाइल के कारण दूर हो रहे हैं। सही समय पर ध्यान न देने से बच्चे की आदतें परिवारजनों के लिए भी नुकसानदायक साबित हो सकती हैं।
सामने आ रही यह प्रमुख दिक्कतें 
– मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से सामाजिक दायरा सीमित हो रहा है।
– बच्चों में तनाव, गुस्सा और चिड़चिड़ेपन की शिकायतें आ रही हैं।
– आंख, गर्दन और मांसपेशियों में दर्द की समस्या भी देखने को मिल रही है।
– बच्चों की काल्पनिक व तार्किक शक्ति में भी गिरावट आ रही है।
– कुछ खतरनाक गेम बच्चों को टेंशन में डाल रहे हैं।
स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव 
वरिष्ठ बाल मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप निगम कहते हैं कि मोबाइल का हद से ज्यादा इस्तेमाल बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर गलत असर डाल रहा है। वार गेम जैसे खेलों से बच्चों में तनाव, गुस्सा और चिड़चिड़ापन के साथ ही आंखों, गर्दन व मांसपेशियों में दर्द की शिकायतें भी सामने आ रही हैं। इससे भी बड़ी समस्या यह है कि बच्चों का सामाजिक दायरा सिमट रहा है। अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों को मोबाइल की लत का शिकार न होने दें।

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