नई दिल्ली  इस बार सर्दी तो मार्च तक रही, अब गर्मियों पर भी जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिख रहा है। मौसम विज्ञानियों के मुताबिक, भूमध्य रेखा के आसपास प्रशांत क्षेत्र में अल-नीनो का प्रभाव रहता है। इसमें प्रशांत महासागर में समुद्री सतह का तापमान भी असामान्य रूप से बढ़ जाता है, जिससे पूरे एशिया के मौसम पर प्रभाव पड़ता है। जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ घटता वन क्षेत्र और बढ़ता शहरीकरण भी भीषण गर्मी की प्रमुख वजह है। सिर्फ दिल्ली की ही वहीं, पूरे उत्तर भारत में भीषण गर्मी और तापमान में इजाफे की यही तीन वजहें प्रमुख हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली के वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र द्वारा कुछ समय पूर्व तैयार की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक जिन क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर कंक्रीट का जंगल देखने को मिलता है और जिन क्षेत्रों में अभी भी शहरीकरण का प्रभाव कम है, वहां के तापमान में खासा अंतर देखने को मिलता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक लोधी गार्डन, बुद्धा जयंती पार्क, हौजखास, रोहिणी स्थित स्वर्ण जयंती पार्क व संजय वन ऐसे क्षेत्र हैं, जहां बाकी दिल्ली के मुकाबले तापमान में तीन से छह डिग्री तक की कमी देखने को मिलती है, जबकि पुरानी दिल्ली का इलाका, कनॉट प्लेस, भीकाजी कामा प्लेस, सफदरजंग, बदरपुर और नोएडा इत्यादि की धरती कहीं ज्यादा तपती है। यहां का तापमान भी चार से 4.5 डिग्री तक अधिक रहता है।

गैर सरकारी संस्था इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलपमेंट (इराडे) द्वारा तैयार एक अध्ययन रिपोर्ट भी इसकी तस्दीक करती है। इसके मुताबिक बढ़ते तापमान के लिए प्रकृति नहीं, बल्कि दिल्ली खुद जिम्मेदार है। कंक्रीट के बढ़ते जंगल से हरित क्षेत्र लगातार घट रहा है। हरियाली का मतलब घास वाले पार्क नहीं, बल्कि वन क्षेत्र होना आवश्यक है। पार्को में भी बड़े पेड़ होने चाहिए। इसी तरह से कच्चा क्षेत्र, जहां वर्षा जल संचयन हो सके, दिल्ली में समाप्त होता जा है। कमर्शियल गतिविधियों और वाहनों का उपयोग बढ़ रहा है।

इन सभी कारणों से दिल्ली में हीट लगातार बढ़ रही है। दूसरी तरफ सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरमेंट (सीएसई) द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस पर जारी की गई स्टेट ऑफ इंडियाज की अपडेटेड रिपोर्ट पर गौर करें तो दिल्ली में वन क्षेत्र को बचाने के लिए भी उदासीनता बरती जा रही है। इसका अंदाजा इससे लगता है कि वन क्षेत्र के लिए वित्त वर्ष 2016-2017 में 50 लाख रुपये का बजट जारी किया गया था। वित्त वर्ष 2017-2018 में यह 40 फीसद घटकर 30 लाख रह गया, जबकि वित्त वर्ष 2018-2019 में वन क्षेत्र के लिए एक रुपये का भी बजट जारी नहीं किया गया है।

कनॉट प्लेस सबसे गर्म, बुद्धा जयंती पार्क सबसे ठंडा

कनॉट प्लेस या भीकाजी कामा प्लेस में सबसे ज्यादा गर्मी रहती है, क्योंकि वहां वन क्षेत्र बिल्कुल नहीं है। वाहनों का आवागमन ज्यादा रहता है, जिनका धुआं प्रदूषण और गर्मी फैलाता है। इसके अलावा व्यवसायिक इमारतों में लगे एयर कंडीशनर गर्म हवा छोड़ते हैं, जबकि रिज एरिया पर बुद्धा जयंती पार्क में ऐसा कुछ भी नहीं है।

तापमान बढ़ने से दिल्ली में बढ़ी बिजली की मांग

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : राजधानी में तापमान के साथ बिजली की मांग भी बढ़ गई है। सोमवार को इस वर्ष की सबसे अधिक 6632 मेगावाट बिजली की मांग दर्ज की गई। रविवार की तुलना में सोमवार को अधिकतम मांग लगभग दो सौ मेगावाट तो न्यूनतम में साढ़े तीन सौ मेगावाट ज्यादा रही। कई इलाके में लोगों को अघोषित बिजली कटौती का भी सामना करना पड़ रहा है। रविवार रात साढ़े नौ बजे के करीब 272 मेगावाट बिजली की कटौती की गई। बिजली वितरण कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि मांग बढ़ने से ट्रांसफॉर्मर के ट्रिप होने की शिकायतें बढ़ रही हैं। इसे जल्द ठीक किया जाता है।

डॉ. मंजू मोहन (अध्यक्ष, वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र एवं आइआइटी दिल्ली की प्रोफेसर) के मुताबिक, अर्बन हीट आइलैंड ऐसे क्षेत्रों को कहा जाता है जो शहर का हिस्सा होने के बावजूद कहीं ज्यादा गर्म होते हैं। इस गर्मी के लिए भी प्रकृति नहीं, बल्कि वहां के लोग खुद जिम्मेदार हैं। अगर शहरों को अत्यधिक गर्मी से बचाना है तो शहरीकरण पर अंकुश लगाना जरूरी है। वरना धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती जाएगी।

रोहित मगोत्र (उप निदेशक, इराडे) ने बताया कि पिछले एक दशक में दिल्ली का विकास तो हुआ है, लेकिन इस विकास के नाम पर या तो भवन निर्माण हुआ है या फिर सड़कों पर वाहनों की भीड़ बढ़ी है। इसके विपरीत दिल्ली का प्रकृति प्रदत्त स्वरूप खत्म होता जा रहा है। यही वजह है कि भीषण गर्मी के इस मौसम में दिल्लीवासी घर से बाहर निकलने पर कहीं छाया ढूंढ़ने के लिए ठिकाना ढूंढ़ते नजर आते हैं, लेकिन ऐसा ठिकाना नहीं मिलता है। गर्मी से बचाना है, तो शहरीकरण पर अंकुश लगाना जरूरी है।

डॉ. केजे रमेश (महानिदेशक, मौसम विज्ञान विभाग) का कहना है कि मौसम की स्थिति में चरम की ओर तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। इसकी वजह जलवायु परिवर्तन ही सामने आ रहा है। यह भी सही है कि हरियाली का मतलब घास वाले पार्क नहीं होते। वन क्षेत्र होना आवश्यक है। इसी तरह कच्चा क्षेत्र, जहां वर्षा जल संचयन हो सके, दिल्ली में अब लगातार घटता जा रहा है।

गर्मी से बच्चों व बुजुर्गों को खतरा अधिक

वसंत कुंज स्थित फोर्टिस अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. राहुल नागपाल ने कहा कि भीषण कर्मी के कारण बुखार, सिर दर्द, उल्टी की परेशानी से पीड़ित बच्चे इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। कई बच्चों को घबराहट व थकान भी होती है। गर्मी से बचाव के लिए एसी या कूलर का इस्तेमाल करें। डॉक्टर कहते हैं कि बुजुर्गों को भी हीट स्ट्रोक का खतरा अधिक रहता है।

अस्पतालों को जारी किया अलर्ट

मौसम के मौजूदा मिजाज को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय ने अस्पतालों को अलर्ट भी जारी किया है। इसके तहत हीट स्ट्रोक के मरीजों को प्रमुखता के आधार पर इलाज उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है।

गर्मी के दुष्प्रभाव का अंतिम चरण है हीट स्ट्रोक : डॉ. मनोज शर्मा

फोर्टिस अस्पताल के इंटरनल मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ. मनोज शर्मा ने बताया कि हीट स्ट्रोक शरीर पर गर्मी के दुष्प्रभाव का अंतिम चरण है। इससे पहले के तीन स्टेज हैं। यह हीट सिंड्रोम से शुरू होकर हीट स्ट्रोक तक हो सकता है। हीट सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति को गर्मी के कारण डिहाइड्रेशन होने लगता है। साथ ही घबराहट व बेचैनी होती है। दूसरे चरण में मांसपेशियों में दर्द और थकान होने लगती है। इसके अलावा कई लोगों में गर्मी के कारण एग्जर्सन होता है। हीट स्ट्रोक होने पर शरीर का तापमान नियंत्रित करने का सिस्टम खराब हो जाता है। इसलिए पसीना आना बंद हो जाता है। इस कारण शरीर ठंडा नहीं हो पाता। इस दौरान 104 डिग्री फारेनहाइट से अधिक तेज बुखार हो जाता है। इस वजह से तंत्रिका तंत्र और मस्तिष्क पर असर पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में चिड़चिड़ापन व बेहोशी जैसी स्थिति हो सकती है और कुछ लोगों को दौरे भी पड़ सकते हैं। आरएमएल अस्पताल के डॉक्टर कहते हैं कि इमरजेंसी में हीट स्ट्रोक से पीड़ित मरीज पहुंच रहे हैं। लोकनायक अस्पताल की इमरजेंसी की मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. रीतू सक्सेना ने कहा कि गर्मी के कारण बुखार व सिर दर्द की शिकायत लेकर लोग इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।

जानलेवा हो सकता है हीट स्ट्रोक

गर्म हवा के थपेड़े से हीट स्ट्रोक का खतरा बना हुआ है। थोड़ी सी लापरवाही जानलेवा हो सकती है। डॉक्टर कहते हैं कि 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर शरीर को मौसम के अनुकूल ढलने में दिक्कत होती है। इसके चलते अधिक देर तक धूप में रहना खतरनाक है।